Friday 24 December 2010

Jaag Yuva / जाग युवा

युवा तेरे हाथो में भविष्य
पर तेरा क्या वर्तमान है
उठ जाग मत सो ज्यादा
देश का तुझपे अभिमान है

...देख चारोओर हर जगह
फैला भ्रष्टाचार है
तू क्या अब भी सोता रहेगा
जो तू कल का सहार है

क्या रक्खा है नशे में
क्यों "काम" के पीछे तू बेकार है
क्या जिंदगी इसी से है तेरा
इसी से तो तेरा स्वाहा संसार है

तेरी ख्वाहिशे हीं तो लुट रही है
कुछ खिले अनखिले संसार को
स्वर्ग सी धरती हो जाये
बस तू विचार ले अपने विस्तार को

जाग तेरे सोने से एक युग बंचित हो रहा है
जाग तेरे सोने कोटि मानुष रो रहा है
क्या तू अब भी सोता रहेगा
जो तेरे सोने से तेरा आत्मा भी जो सो रहा है

जाग दिखादे अपना हौसला
जहर तुझे, जग़ को पिलाने वालो को
तू बता दे तू गंगा है
अस्तित्व तेरा "है!" बतादे तुझसे नहाने वालो को

जाग "युवा" अब न जगा तो देर हो जायेगा
तेरे सोने के साथ साथ इंसानियत सो जायेगा
इतिहास के पन्ने फिर न दोहराएंगे वीरो की कहानी
हर इतिहास तब रावन लिखवाएगा
(शंकर शाह)

Monday 13 December 2010

Muskan ke Sath / मुस्कान के साथ

हमारे चलने के साथ साथ एक भीड़ चलता...एक उम्मीद के साथ की मौका मिले की हमारा पैर खिंच सके..आस्तीन के सांपो से घिड़े हुए...कई सोच विचारो के मिलावट से मैंने बचाओ रूपी कई दवाईयों का आविष्कार किया...पर वो मुझ से बड़े अविष्कारकर्ता निकले...मेरे हर अविष्कार के साथ उनका एंटीबायोटिक तैयार होता है...जो भी हो हर हार के बाद मै भी जुट जाता एक नए अविष्कार में...इस सिलसिलो में एक चीज सिखने को मिला...हमारा सबसे बड़ा कमजोड़ी यह है हम आवेश में आ जाते है और हम अपना काबिलियत खोने लगते है...मैंने शुरुवात कर दिया है उनका स्वागत करना मुस्कान के साथ और आप....


(शंकर शाह)

Saturday 11 December 2010

Jindagi Adhura Na Reh Jaye / जिंदगी अधुरा न रह जाये

दिनों के बाद आज सूरज के उतार चढाव को देखने मिला...जिंदगी भी हमारी ऐसी हीं है न...सुबह के लालिमा से चलते चलते एक मोड़ आता है...जहाँ  अँधेरे के सिवा कुछ नहीं...पर इस अँधेरे में चाँद मिल जाता है एक भरोसे के साथ फिर कल सुबह...चाहे सुबह हो या न हो....जहा जिम्मेदारी के बोझ में हम सूरज होते है...वही कुछ पल अपनों के.. हमारे अन्दर चाँद के लिए तरस जाता है...चलिए सूरज चाँद के फासलों के बिच एक ब्रिज बनाये एक नए सोच के साथ पता नहीं कल हो न हो और जिंदगी अधुरा न रह जाये...


(शंकर शाह)

Wednesday 8 December 2010

हम गम हीं गम में खुद को जलाते रहे...उनका प्यार तो देखो हमारे गम से घर का बाती जलाते रहे...गम में हमारे आंखे नदी बन गई...और उन बेशर्मो को देखो कपडे खोल उसमे नहाते रहे...

(शंकर शाह)

Monday 6 December 2010

I HATE YOU

* I Hate U *

I Hate U......
Wait Me For So Long
I Hate U
Coz U
I Hate U......
Coz U Make Me Lively
I Hate U......
Coz U Want Me Perfect

I Hate U......
Coz U Trust Me Blindly
I Hate U......
Coz U Make Me Selfish
I Hate U......
C
oz U Stimulate My
Feelings
I Hate U......
Coz U Make Me Strong
I Hate U......
Coz U Invlove Me
In Relation
I Hate U......
Coz U Don't Make My Fun

I Hate U......
Coz U Understand Me
Coz U Warm My Heart
I Hate U......
Coz U Make Me
Broadminded
I Hate U......
Coz U Make Me Poet
I Hate U......
I Hate U......
Coz......... ..
I Madly Love U

Wednesday 1 December 2010

हमारे नादानियों मतलब ये नहीं की हमे कुछ पता नहीं...हम तो चुप रहते है...आपका मुस्कान कीमती है जो मेरे लिए.....
(शंकर शाह)

Tuesday 30 November 2010

Sabse Achhe Sathi / सबसे अच्छे साथी

कल जो मेरे कल पे मुस्कुराते थे...वो मेरे कल के सबसे अच्छे साथी थे....मेरे कल में अंकुरित हो रहे औकात के बिज को पानी खाद दे रहे थे..कटास के पत्थर मार मार कर.. एहसास दिला कर मेरे औकात को...आज के हाथ में उनका कुछ नहीं पर कल उनके हाथ के खाद पानी से सिन्चा बिज आज जवान हो रहा है...
 


(शंकर शाह)

Saturday 27 November 2010

Khamosh Chikh / खामोश चीख

सड़क पर दूर भीड़ लगी थी


एक जनसमूह का जैसे मेला लगा था


रात गहरी थी सूझ नहीं रहा था


पर लगा कुछ तो जरूर माजरा था




कौतहुलवस् मै भी भीड़ का हिस्सा


देखा तो एक लड़का लड़खड़ा रहा था


फिर पूछा, इस लड़के को देखने भीड़


देखा तो जनसैलाब मुस्कुरा रहा था




कुछ तुतलाहट वाली लब्ज में


कुछ इशारो मै वह भीड़ को कुछ समझा रहा था


मैंने सोचा होगा नसे मै धुत


इसीलिए शायद बडबडा रहा था




चेहरे पर क्षमा की बिनती


आंख से आंशू छलक रहा था


पर बंद लब था


शिथिल काया से कुछ समझा रहा था




कुछ समाज सुधारक थे चेहरे वहां


जिन्हें वो खामोश चीख से कुछ समझा रहा था


पर वो समाज सुधारक चेहरे


कार्यकर्ताओ के रूप में उसपे लात, घूंसे, थप्पर लगा रहा था




खड़े भीड़ का क्या, कोई सही,


कोई इस क्रिया को गलत बता रहा था


किसी किसी के लबो पे उफ़ था


पर सब बिना टिकेट के शो का मजा ले रहा था




मै एक सरीफ इज्जतदार नागरिक


मेरा रुकना नागवार था


मेरे मन ने गाली दी जनसमूह को


और मै वहां से निकल गया




रात बीती बात बीती के तर्ज पे


सुबह चाय की चुस्की लगा रहा था


ब्रेकिंग न्यूज़ देखा तो


"चैनल" समाज का चेहरा दिखा रहा था




भूखे मरता एक आदमी


समाज खड़ा तमाशा देख रहा था


हर चैनल पर एक हीं समाचार


इंसानियत, नेता कहा खो गया




चैनल बदला हर चैनल पर


एक सा हीं न्यूज़ आ रहा था


एंकरों को गौड़ से देखा तो ख्याल आया


ये सब तो वोही कार्यकर्ता है जो बीती रात बहुत प्यार जता रहा था..




(शंकर शाह)

Tuesday 23 November 2010

रात से दिन के फासले में.. दुनिआदारी के भागम भाग में हम खिलौने बन रह गए....वो दिन से रात और रात से दिन बनते रहे...वक़्त बदलता रहा और वो भी बदलते रहे...चेहरे के पीछे चेहरा और चेहरे को ऊपर चेहरा...चेहरे बदलते रहे और वो चेहरे के साथ कहने को खुद को बदलते रहे...क़त्ल करने को उनके हाथ में देखो आज मानवबोम्ब है... और हम अपने घर में चूल्हा चौका के उलझनों में हीं उलझे रहे....

(शंकर शाह)

Saturday 20 November 2010

रोज चाँद उतरता है मेरे ख्यालो के रात से उतरकर मेरे आँखों के आंगन मे.. सूरज के रौशनी से हीरे सा चमकता ओस...पर दोनों आंख खोलो तो..........:)

Thursday 11 November 2010

जिंदगी सालो का गणित नहीं है...पलो का जीना है...पलो को जोड़ जोड़ के अर्धसतक और सतक पूरा होता है...जैसे बूँद बूँद से सागर...मुझे सागर सा नहीं बनना..मुझे नदियो उस तट सा बनना है ताकि मै अनुभूति कर कर सकू नदियो के शीतलता,मधुता और उनके त्याग की जो प्रयास है.....

शंकर शाह

Tuesday 9 November 2010

Atmamanthan / आत्ममंथन

जब आत्ममंथन करते है...बहुत कुछ बदलने लगता है..ज्वारभाटा के लहरों की तरह पुराना कुछ तट तोड़ के नया कुछ छोड़ना...जिद के तूफ़ान में मिटटी से बदलते बदलते पत्थर तो बन तो सकते है...पर अन्दर ज्वालामुखी खामोश तो नहीं है...घर नया हो तो पुराना पता मिटाया नहीं जाता...दोस्तों के कदम रिस्तो की चिट्ठी...पहले पुराने पते पर हीं आती है.....




(शंकर शाह)

Wednesday 20 October 2010

Ek Chehra / एक चेहरा

सपनो में जागते खुद से भागते हुए...इंसान का एक प्रतिविम्ब बन चूका हूँ...चलते सूरज के साथ दौड़ने की वजाय घर में, ऑफिस के ए/सी में बैठना अच्छा लगता है...धरती से सूरज का जो मिलन होता था...मुहाने का तालाब मेरे कागज़ का नाँव.. अब कहा, सब वक्तब्य रूपी व्यस्ता के कुम्भ में खो रहा है...यादे भी तो अब माँ का चेहरा बन चुकी है...एक चेहरा राह तकते किसी का...

(शंकर शाह)

Monday 18 October 2010

परेशानियो के उलझन मै उलझते जाते है...सपनो में जैसे भयानक कोई दौड़ा रहा है...परेशानी सपनो के भूत की तरह है.. आंख जब तक बंद तैराकी नहीं जानते हुए भी नदी के बिच में और आंख खुली तो...खुद के भाग के जिंदगी नहीं है...घर बदलने से अगर दुनिया बदल जाती हालात बदल जाते...


(शंकर शाह)
अच्छाई पे बुराई की जीत या बुराई पे अच्छाई की जीत...जीत के लिए जरूरी है समर्पण की...किसी के लिए रावन कोई भी मायने रखता हो...पर मेरे लिए रावन का जरूरत है अपने अन्दर राम को पहचानने के लिए....आप सभी को विजयादशमी की सुभकामनाये.....:)

Wednesday 13 October 2010

Ghar Badalbe Se Pahle / घर बदलने से पहले

अनुभूति से ओझल हो रहे प्यार के एहसास के बिच..अँधेरा होने से पहले...दिल के कोने में आकर्षण का दीपक जल जाता ..और एक बार फिर घर बदलने से पहले डाकिया चिट्ठी डाल गया....

(शंकर शाह)

Tuesday 12 October 2010

DAM / दम

पलकों के बरसात से मिट रहा है इंसानियत ..नए सवेरे की चाह हर रात माँ का आंचल बन लोरी सुनाता... हकीकत का सड़क सुनसान  ...चल रहा है भीर का हिस्सा बन.. आज के गोद मै भूख भुत बनकर दौड़ा रहा है...नहीं जीने के बहुत बहाने है और जीने के लिए एक हौसला काफी...न जाने उसके हौसले में अभी कितना दम है बाकि...

(शंकर शाह)

Saturday 9 October 2010

Madhusala / मधुशाला

आ बनाया है , ये मधु का प्याला,
लगाले अधरों से भूल जाएगी गम,
भूल जाएगी सब हाला,
रोना नहीं मेरी अंगूरी,
चाहे रोज तोडू तेरा हड्डी या ताला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
 

माँ को देख ले, कल तक वो
कमाती रही मेरे लिए...
आज तुने है कमान संभाला,
आजा चखले ये स्वर्ग सी प्याला
भूल जाएगी हर गम,
क्योकि हर गम का है
यह हाला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
 

मत देख पीछे, अपने बच्चो को माँ को,
मैंने खा लिया है, अब भूख नहीं है बाला
अब तो चाहता हूँ दो घूंट उतार लू हलक में
ताकि निशि रात भी न लगे मुझे काला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
 

ह्म्म्म क्या सोचती, मत सोच
अपने ननद के लिए, भगवान ने
उसका भी किस्मत लिख डाला,
उसे भी ले जायेगा कोई पीनेवाला
चल पी न,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
 

क्यों कोश्ती है अपने किस्मत को
तू खुशनसीब है, मै जिसे मिला
वो है किस्मत वाला,
देख नेता कहते मुझे, तू मेरे कुर्सी का रखवाला
देख मेरे वजह से चल रही, टूनडू का मधुशाला
नेताओ की जी हुजूरी दंगा फसाद,
माओबाद का में हीं तो हूँ जाला, 
मुझे मिल जाये अंगूरी  रस
फिर नहीं चाहिए स्वर्ग रूपी मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
 

मुझसे हीं घर बिखरे, कई घड़ो मैंने तोड़ डाला
मुझे भी दुख होता है जब तोड़ता मंदिर मस्जिद
पर इसी से तो मिलती है तुझसी मधुबाला
सब साफ़, जब बैठता ऊपर मधुशाला
हाँ येही से सुरुआत येही ख़तम
येही तो है मेरा मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला


(शंकर शाह)

Friday 8 October 2010

Hum Bachhe Hai / हम बच्चे है

वक़्त के थपेड़ो का भी जबाब नहीं...जब हम जमीन से आसमान हो रहे होते है..तो कभी सीढ़ी बन जाता है तो कभी पापा का अंगुली तो कभी माँ के आंचल का एहसास और कभी दोस्त के थपेड़ो सा...बेटा ज्यादा मत उड़ वरना लात मारूंगा... सोच के बुगुर्गता के मोड़ पे भी हमे एहसास करा जाता है की हम बच्चे है...... 

(शंकर शाह)

Monday 4 October 2010

Door Rakhna / दूर रखना

तैयार होते घर की नींव कमजोर थी..मैंने कहा हमारे घर के बुनियाद का नींव हीं कमजोर है...पर मेरी चीख उनके आंख के चमक के आगे फींकी पर गई...मेरा दिल कशोसटा रहा मुझे पर मै कुछ नहीं कर पाया...कई सदस्य थे जो मेरे विचार से इत्तेफाक रखते थे...पर घर के चमक के आगे वोह भी अंधे हो गए...और मै आज भी प्राथना करता रहता हूँ " हे भगवान आपदावो को हमारे शहर से दूर रखना "

(शंकर शाह)

Saturday 2 October 2010

वो जिंदगी भर दुनिअदारी के अनुभवों के रेट को चुन चुन के मोती बनाते रहे और हम जेनेरेसन गेप कह के उनको ठुकराते रहे....


Friday 1 October 2010

Tumhare Safar ka Manchitra / तुम्हारे सफ़र का मानचित्र

जब देखता हूँ रात की कालिमा को...एक नए सवेरे का विश्वास होता है...और दिन के भागमभाग के बाद जरूरी हो जाता कुछ पल अँधेरे का...मेरे जीने के लिए.. मुझे बहुत जरूरी है कल से आज को बांधे रखना..कल के नींव से हीं तो मेरे आज का घर है...सुक्रिया मेरे कल पे मुस्कुराने वालो...धरती के चादर ओढ़े हुए जिस पत्थर को तुमने लहरों में बहाया था वो तुम्हारे हाथ से फिसल चूका तुम्हारे सफ़र का मानचित्र था...  


(शंकर शाह)

Thursday 30 September 2010

Atut Satya / अटूट सत्य

बहुत कुछ मौत जैसा अटूट सत्य है लेकिन मै नकारता हूँ ...इसीलिए नहीं की मै कुछ हूँ...इसीलिए मेरे सच से किसी के भावनाओ के घर मै आग न लग जाये...पर सोचता हूँ ये कैसी भावना...जो सच को झूठ और झूठ को सच मानता हो..हाय रे दुर्भाग्य इतिहास के अव्सेशो को जो चीख चीख के कह रहा है में हूँ...मै देख रहा हूँ फिर भी नकार रहा हूँ...क्या करू ये मेरे ये संस्कार है किसी सजीव को चोट न पहुंचावो..

(शंकर शाह)

Tuesday 28 September 2010

Vichar ka Vyagyanik / विचार का वैज्ञानिक

बहुत सोचा धरती गोल क्यों है...फिर विज्ञानं कहता है की ये घुमती है...पर ऑफिस से घर और घर से ऑफिस की दुरी तो उतनी ही है...रिश्ते, नाते, दोस्त, परिवार सब एक हिन् जगह पर हैं अगर धरती घुमती तो ये भी घूमता और छुटते इन सब से फिर गले मिलता पर मेरे विचार का वैज्ञानिक सोच के प्रयोग पर कही सठिक नहीं बैठ रहा.....

(शंकर शाह)

Monday 27 September 2010

Kya Apne Dekha Hai / क्या आपने देखा है

दोस्ती कितना प्यारा शब्द न...दुनिया कई रिस्तो का एक संकलित शब्द जो खुद रिस्तो में नहीं बंधा है पर कई रिस्तो को अपने साथ बांधे होता है...कितना खुशनसीब होते है जिसके सच्चे दोस्त होते होंगे...मैंने किताबो, फिल्मो में, बहुत सारे लोगो के लब्जो में बहुत जिक्र सुना है  पर देखा नहीं क्या आपने देखा है ?

(शंकर शाह)

Sunday 26 September 2010

Azadi ki Chingari

जिन्होंने आज़ादी की चिंगारी, आग बनाई खुद को भस्मीभूत करके, खुद की आहुति देके, वो एक पर खुद में लाख थे, जैसे लकडिया तो सब जलती है...पर किसी में तपन ज्यादा होता है किसी में कम, कोई जल्दी जल्दी जलता है कोई वक़्त लेता, हम उन से प्रेरणा ले सकते है...उन से कुछ बेहतर करने का या कमसे कम उनके राहों में खुद को एक राहि बनाके...
भगत सिंह के जयंती पर उनको सत सत नमन...

Friday 24 September 2010

Ankho ki Bhasha / आँखों की भाषा

गर्मी से झुलसते शरीर से जब स्पर्श करता शीतल हवा..अपने प्यार को चाँद में तलाशना और बंद लबो से संगीत बनाना...कुछ स्पर्श कई तालो को खोल जाते है बंद परे यादो के गृह में अनमोल पलो के संदूक को ..उन लम्हों कैद कुछ फूल होते है तो कुछ शूल..पर जरूरत है कभी कभी बंद परे घर के ताले को खोलना... अपने गाँव से शहर तक का सफ़र के बिच की पुलिया को देखना...बहुत कुछ होते है जो बयाँ करना चाहता हूँ पर आँखों की भाषा पढता कोई नहीं....


(शंकर शाह)

Thursday 23 September 2010

Pyaar Ka Samarpit Drishya / प्यार का समर्पित दृश्य

व्याकुल मन थक के जब शांति ढूंढता था .आकर्षित करने लगता था गाँव के मुहाने पर का तालाब..अच्छा लगता था  देखना ढलते सूर्य की लालिमा जल के दर्पण में...मछलियो का निर्भय विचरण जो लोक जीवन में दुर्लभ हो गया है..प्यार का समर्पित दृश्य हंसो के जोड़े मे ..बहुत अच्छा लगता था ढलते सूरज को अपने मुट्ठी मे कैद करना... काश भागमभाग के जिंदगी मे दम तोड़ते यादो को अपने बच्चो के बचपन से जोड़ पाता 



(शंकर शाह)

Wednesday 22 September 2010

Galti / गलती

कुछ होता है जो होता सच में होता है ...पर सच में विश्वास नहीं होता ..और कभी विश्वास होता है पर उसे विश्वास नहीं करना चाहते ...गलती उसकी नहीं है जो विश्वास नहीं करता है या करता है ...गलती तो कम्भख्त जरूरतों की है जो सभकुछ करवाता है...

(शंकर शाह)

Tuesday 21 September 2010

Tere Shahar Se Door / तेरे शहर से दूर

जा दोस्त तुझे
कभी याद न आऊंगा
मै तेरे शहर से
दूर चला जाऊंगा

पहुत चोट खाए

अब दर्द को न बहलाऊंगा
मै तेरे शहर से
दूर चला जाऊंगा

सोचा क्या तुमने

"ऐसा मजबूरी भी क्या
हमने तुझमे जिया
तेरे जुदाई में मर जायेंगे
येही मेरी किस्मत है
तेरा गम तेरे आंशु
तेरी मजबूरी अपने साथ
ले जाऊंगा
मै तेरे शहर से
दूर चला जाऊंगा

दुआ है बस खुश रहना तू

गम तुझसे फसलो में रहे
मै तेरे हर गम को साथ
ले जाऊंगा
मै तेरे शहर से
बहुत दूर चला जाऊंगा


(शंकर शाह १०-०२ -२००३)

Monday 20 September 2010

Kuchh Bite Pal / कुछ बीते पल

बीते वक़्त को खंगाल के देखा तो यादो के रूप में बहुत सारे मोती हाथ में आ गिरे...कुछ बीते लम्हों के मोतीयों ने याद दिलाये कितना प्यारा वक़्त था न जो बीत गया..और......कुछ बीते पल छुईमुई की तरह हो गयी है...उसे यादो के आगोश में उसे पकरना तो चाहता हूँ पर वो खुद को वक़्त के पत्तीओं सी छुपा लेती है...आज ऐसे हीं कुछ लम्हे को पकरना चाहा
 

(शंकर शाह)

Thursday 16 September 2010

Buto Ke Mandir ka / बुतों के मंदिर का

किसी सफ़र मे चलने के लिए जरूरी हो जाता है होना किसी पदचिन्ह का...अनुशरण करना या तो जरूरी होता है, संस्कार या तो मजबूरी..पर हाल मे अनुशरण करना है..हाँ कुछ सरफिरे चाहते तो  है इंसानियत के सफ़र को आसान बनाना पर वो तो पागल होते है.. क्योकि वो चमत्कार नहीं चीत्कार करते है हमारे आत्मा के गहराइयों में..पर में खुद को पागल नहीं समझता..इसीलिए मै भी तो बुतों के मंदिर का एक उपासक हूँ..जहाँ भावनाओ को अहंकार के तलवार से हररोज़ बलि दिया जाता है...

(शंकर शाह)

Wednesday 15 September 2010

Har Kramash Ke Bad / हर क्रमश: के बाद

अपने गाँव की मिट्टी की महक हीं कुछ और होती है..कई मिल फासलों के बावजूद मेरे नासिका में महकता रहता है ..मेरे लिए गाँव अब एक अजायब घर की तरह हो गया है...जब दुनियादारी के अविराम चलते सफ़र से थक गया तो पहुँच गया इतिहास के पन्नो में खुद को ढूंढने...हर क्रमश: के बाद जरूरी हो जाता है एक अल्पविराम लगाना अपने पिछले सफ़र को देखने के लिए......क्या पता...

(शंकर शाह)  

Tuesday 14 September 2010

Unki Manzil Ka Akhiri sidhi / उनकी मंजिल का आखिरी सीढ़ी

कभी कभी मेरे मन के सुनसान घर में आहट होती है किसी के करीब होने की...सोच के दरवाजे पर कुण्डी लगी होती है फिर भी सांसो की खिर्कियाँ महसूस कराती है किसी के होने का एहसास..बार बार हर बार मै  ताला बदल देता हूँ..पर कमबख्त ये लालसा रूपी ताला हर बार चटक जाता है इस एहसास में की सायद उनकी मंजिल का आखिरी सीढ़ी हम हो....
 


(शंकर शाह)

Friday 10 September 2010

WO YUN HUMSE / वो यूँ हमसे

दिल रोती रही लब मुस्कुराते रहे...
वो यूँ हमसे अपना गम छुपाते रहे
मैंने गमो को अल इस वेल कहा
और वो "यू वेल्काम" कह सिने लगते रहे

कैसे लगादु इलज़ाम उनके वफ़ा पे
वो मेरे खातिर इल्जामे "बेवफा" उठाते रहे
मेरे ख्वाहिशो को अब लुट जाने दो
वो मेरे खातिर अपने ख्वाबो को जलाते रहे


........................................

Saturday 4 September 2010

क्या खोया क्या पाया...कितना दिया और कितना मिला..कमाने और पाने के चक्कर में कमबख्त हम किये एहसान को बाजार और अपने भावनाओ को बनिया बना दिए है...

Wednesday 1 September 2010

Happy Janmaastmi / जन्मास्टमी की ढेरो सुभकामनाये...

लड़ाई झगरे, द्वेष इर्ष्या मार काट से उब कर धरती एक लम्बा शान्ती चाहती, इंसानियत मन भी..इंसानियत मन के परिंदे सफ़ेद कपडा लिए धरती की परिक्रमा कर रहे...आओ सब भूल कर प्यार का गीत गुनगुनाये...में तो सामिल हूँ और आप...गोकुलधाम, भारतधाम के वासिओ शान्ती का ध्वज, प्यार का माखन लिए अप सभी को जन्मास्टमी की ढेरो सुभकामनाये...

Tuesday 31 August 2010

Kutch Khusboo Bikherte / कुछ खुशबू बिखेरते

रोज के भागमभाग के बिच मेरे मरते ख्वाहिशो से..अकेलेपण की खामोश चीख रात का चादर लिए दिल में एक दिलासा...रेत से पत्थर बनते फासले के बिच..रेगिस्तान में कुछ जीवन तो है ..थक चूका पैरो मे जीने ख्वाहिस.. चाँद को कागज़.. तारो के कलम से बनाता एक चेहरा..हवा घुटन भरी सांसो के बिच कुछ खुशबू बिखेरते हुए...ऐसे जैसे हर मौत के आहट पर एक बार फिर से जीने की तमन्ना..

 
 
(शंकर शाह)

Monday 30 August 2010

Pyaar Aur Lal Gulab

एक चिडिया था खुशी का चिडिया जिसका एक राजकुमार से दोस्ती था! वैसे तो सारे उसके दोस्त थे फूल पेड़ पौधे पुरी प्रकिती सब उसके दोस्त थे क्योकि वो तो खुशी का चिडिया था जब वो गाना गाता मानो सारा प्रकिती झूम उठता मानो लगता ऐसा की लग रहा हो की सारी दुनिया उसके गानों पे झूम उठा हो नाच रहा हो सुर मैं सुर मिला रहा हो पर ये क्या राजकुमार क्यों उदास है! जिसके गाने पे आसमान फूल बरसा रहा हो प्रकिती सुर मिला रहा हो उसका गाना सुनकर भी राजकुमार उदास है! क्यों खुसी का चिडिया से रहा नही गया वो राजकुमार से पूछ बैठा "क्या बात है राजकुमार आज आप उदास क्यों है, क्यों आज मेरे गाने के वावजूद भी आपके चेहरे पे उदासी है, क्या बात है राजकुमार"
राजकुमार ने कहा "क्या करोगे खुशी की चिडिया जा कर मेरे उदासी का कारन मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो दोस्त "
पर वो तो था खुशी का चिडिया कहा ! उसको मंजूर था की उसके होते हुए कोई उदास रहे वो जिद्द कर बैठा नही मुझे बताओ क्या कारन है तो तुम उदास हो नही मानता देख राजकुमार ने खुशी के चिडिया से कहा "खुशी का चिडिया मुझे एक देश के राजकुमारी से प्यार हो गया है पर उसका एक सर्त है उसे एक लाल गुलाब चाहिए और तुम्ही बताओ इस दुनिया मैं लाल गुलाब कहा मिलता है, अगर वो मुझे नही मिली तो मैं मर जाऊंगा, इसी लिए मैं परेशान हूँ दोस्त"
पर वो तो था खुशी का चिडिया उसके रहते हुए कैसे कोई उदास रह सकता है उसने राजकुमार से कहा "राजकुमार मैं लूँगा तुम्हारे लिए लाल गुलाब " और वो बाग़ मैं गुलाब रानी के पास जा पहुँचा "गुलाब रानी गुलाब रानी मुझे लाल गुलाब चाहिए कहीं से भी लाओ पर मुहे लाल गुलाब चाहिए" तब गुलाब रानी ने कहा "कहा से ला लाल गुलाब तुम्हे तो पता है इस दुनिया मैं कही भी लाल गुलाब नही मिलता" पर कहा हार मानने वाला था खुशी का चिडिया वो सारा दुनिया घूम लिया पर उसे कही भी नही मिला लाल गुलाब" पर कहाँ हार मानने वाला था खुशी का चिडिया फ़िर वो जा पहुँचा गुलाब रानी के पास "गुलाब रानी गुलाब रानी मुझे लाल गुलाब चाहिए " जब गुलाब रानी ने देखा की खुशी का चिडिया नही मान ने वाला तो उसने खुशी के चिडिया से कहा "देखो खुशी का चिडिया मेरा फुल लाल हो सकता है जब कोई अपने कोमल जिस्म को मेरे कांटे से चुभो दे और उसके एक एक खून बूंद से मेरा फूल लाल हो जाएगा " खुशी के चिडिया ने चारो तरफ़ देखा उसे हर चेहरे मैं एक सवाल नजर आया पर वो तो खुशी का चिडिया था फूल रानी के कांटे मैं खुशी के चिडिया ने अपना जिस्म चुभो दिया और गाना गाने लगा ऐसा गीत उसने कभी गाया था और किसी ने वैसे गीत सुना था वो गा रहा था
खुशी का गीत पर उसके कंठ से दर्द साफ झलक रहा था ऐसा दर्द गाने मैं जो सुनकर हर किसी ने रो दिया जिस गाने को सुनकर प्रकिती भी रो परी ऐसा दर्द था उस गाने मैं पर वो तो था खुशी का चिडिया उसके शरीर से रक्त का धारा निकलता रहा और गुलाब रानी का हर कली धीरे धीरे लाल होती गई पर एक ऐसा समय आया जब खुशी के चिडिया का आवाज़ छीन हो चुका था और एक आखरी अह निकली उसके मुख से और वो इस दुनिया से विदा ले चुका था गुलाब रानी ने जब अपना फूल लाल रक्त सा खिला देखा तो खुशी से चिल्ला पड़ी "खुशी के चिडिया देखो मेरे हर फूल ला हो चुके है,तुम कामयाब हो गए दोस्त तुमने कर दिखाया,देखो खुशी का चिडिया देखो "पर उन गुलाबो के देखने के लिए खुशी का चिडिया जिन्दा था हर चेहरे मैं आंसू थे हर कोई रो रहा था पर एक चेहरे मैं गम से ज्यादा खुशी था जब राजकुमार ने लाल गुलाब देखा तो अपने दोस्त को खो जाने का गम भूल गया वो तुंरत लाल गुलाब ले कर राजकुमारी का देश चल पड़ा
पर यह क्या राजकुमारी ख़ुद उसी के तरफ़ चली रही थी राजकुमार के आँखों मैं चमक और बढ़ गई वो दौड़ा
"राजकुमारी राजकुमारी मैं तुम्हारे लिए लाल गुलाब ले आया देखो ये लाल गुलाब "
राजकुमारी ने ला गुलाब हाथ मैं लिया और राजकुमार से कहा "राजकुमार मुझे अब इसकी जरूरत नही है, मुझे मेरे सपनो का राजकुमार मिल चुका है "और ला गुलाब को एक तरफ़ उछाल दिया और चल पड़ी

राजकुमार अवाक् सा खड़ा होकर देखता देखता रहा कभी पहियो से कुचले धुल से सने लाल गुलाब को तो कभी पृथ्वी के गोद मैं फूलो से दफ़न खुशी के चिडिया को तो कभी राजकुमारी को जाते हुए
वो अवाक् सा खड़ा होकर देखता रहा !!!!!!!!!