Tuesday 31 August 2010

Kutch Khusboo Bikherte / कुछ खुशबू बिखेरते

रोज के भागमभाग के बिच मेरे मरते ख्वाहिशो से..अकेलेपण की खामोश चीख रात का चादर लिए दिल में एक दिलासा...रेत से पत्थर बनते फासले के बिच..रेगिस्तान में कुछ जीवन तो है ..थक चूका पैरो मे जीने ख्वाहिस.. चाँद को कागज़.. तारो के कलम से बनाता एक चेहरा..हवा घुटन भरी सांसो के बिच कुछ खुशबू बिखेरते हुए...ऐसे जैसे हर मौत के आहट पर एक बार फिर से जीने की तमन्ना..

 
 
(शंकर शाह)

Monday 30 August 2010

Pyaar Aur Lal Gulab

एक चिडिया था खुशी का चिडिया जिसका एक राजकुमार से दोस्ती था! वैसे तो सारे उसके दोस्त थे फूल पेड़ पौधे पुरी प्रकिती सब उसके दोस्त थे क्योकि वो तो खुशी का चिडिया था जब वो गाना गाता मानो सारा प्रकिती झूम उठता मानो लगता ऐसा की लग रहा हो की सारी दुनिया उसके गानों पे झूम उठा हो नाच रहा हो सुर मैं सुर मिला रहा हो पर ये क्या राजकुमार क्यों उदास है! जिसके गाने पे आसमान फूल बरसा रहा हो प्रकिती सुर मिला रहा हो उसका गाना सुनकर भी राजकुमार उदास है! क्यों खुसी का चिडिया से रहा नही गया वो राजकुमार से पूछ बैठा "क्या बात है राजकुमार आज आप उदास क्यों है, क्यों आज मेरे गाने के वावजूद भी आपके चेहरे पे उदासी है, क्या बात है राजकुमार"
राजकुमार ने कहा "क्या करोगे खुशी की चिडिया जा कर मेरे उदासी का कारन मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो दोस्त "
पर वो तो था खुशी का चिडिया कहा ! उसको मंजूर था की उसके होते हुए कोई उदास रहे वो जिद्द कर बैठा नही मुझे बताओ क्या कारन है तो तुम उदास हो नही मानता देख राजकुमार ने खुशी के चिडिया से कहा "खुशी का चिडिया मुझे एक देश के राजकुमारी से प्यार हो गया है पर उसका एक सर्त है उसे एक लाल गुलाब चाहिए और तुम्ही बताओ इस दुनिया मैं लाल गुलाब कहा मिलता है, अगर वो मुझे नही मिली तो मैं मर जाऊंगा, इसी लिए मैं परेशान हूँ दोस्त"
पर वो तो था खुशी का चिडिया उसके रहते हुए कैसे कोई उदास रह सकता है उसने राजकुमार से कहा "राजकुमार मैं लूँगा तुम्हारे लिए लाल गुलाब " और वो बाग़ मैं गुलाब रानी के पास जा पहुँचा "गुलाब रानी गुलाब रानी मुझे लाल गुलाब चाहिए कहीं से भी लाओ पर मुहे लाल गुलाब चाहिए" तब गुलाब रानी ने कहा "कहा से ला लाल गुलाब तुम्हे तो पता है इस दुनिया मैं कही भी लाल गुलाब नही मिलता" पर कहा हार मानने वाला था खुशी का चिडिया वो सारा दुनिया घूम लिया पर उसे कही भी नही मिला लाल गुलाब" पर कहाँ हार मानने वाला था खुशी का चिडिया फ़िर वो जा पहुँचा गुलाब रानी के पास "गुलाब रानी गुलाब रानी मुझे लाल गुलाब चाहिए " जब गुलाब रानी ने देखा की खुशी का चिडिया नही मान ने वाला तो उसने खुशी के चिडिया से कहा "देखो खुशी का चिडिया मेरा फुल लाल हो सकता है जब कोई अपने कोमल जिस्म को मेरे कांटे से चुभो दे और उसके एक एक खून बूंद से मेरा फूल लाल हो जाएगा " खुशी के चिडिया ने चारो तरफ़ देखा उसे हर चेहरे मैं एक सवाल नजर आया पर वो तो खुशी का चिडिया था फूल रानी के कांटे मैं खुशी के चिडिया ने अपना जिस्म चुभो दिया और गाना गाने लगा ऐसा गीत उसने कभी गाया था और किसी ने वैसे गीत सुना था वो गा रहा था
खुशी का गीत पर उसके कंठ से दर्द साफ झलक रहा था ऐसा दर्द गाने मैं जो सुनकर हर किसी ने रो दिया जिस गाने को सुनकर प्रकिती भी रो परी ऐसा दर्द था उस गाने मैं पर वो तो था खुशी का चिडिया उसके शरीर से रक्त का धारा निकलता रहा और गुलाब रानी का हर कली धीरे धीरे लाल होती गई पर एक ऐसा समय आया जब खुशी के चिडिया का आवाज़ छीन हो चुका था और एक आखरी अह निकली उसके मुख से और वो इस दुनिया से विदा ले चुका था गुलाब रानी ने जब अपना फूल लाल रक्त सा खिला देखा तो खुशी से चिल्ला पड़ी "खुशी के चिडिया देखो मेरे हर फूल ला हो चुके है,तुम कामयाब हो गए दोस्त तुमने कर दिखाया,देखो खुशी का चिडिया देखो "पर उन गुलाबो के देखने के लिए खुशी का चिडिया जिन्दा था हर चेहरे मैं आंसू थे हर कोई रो रहा था पर एक चेहरे मैं गम से ज्यादा खुशी था जब राजकुमार ने लाल गुलाब देखा तो अपने दोस्त को खो जाने का गम भूल गया वो तुंरत लाल गुलाब ले कर राजकुमारी का देश चल पड़ा
पर यह क्या राजकुमारी ख़ुद उसी के तरफ़ चली रही थी राजकुमार के आँखों मैं चमक और बढ़ गई वो दौड़ा
"राजकुमारी राजकुमारी मैं तुम्हारे लिए लाल गुलाब ले आया देखो ये लाल गुलाब "
राजकुमारी ने ला गुलाब हाथ मैं लिया और राजकुमार से कहा "राजकुमार मुझे अब इसकी जरूरत नही है, मुझे मेरे सपनो का राजकुमार मिल चुका है "और ला गुलाब को एक तरफ़ उछाल दिया और चल पड़ी

राजकुमार अवाक् सा खड़ा होकर देखता देखता रहा कभी पहियो से कुचले धुल से सने लाल गुलाब को तो कभी पृथ्वी के गोद मैं फूलो से दफ़न खुशी के चिडिया को तो कभी राजकुमारी को जाते हुए
वो अवाक् सा खड़ा होकर देखता रहा !!!!!!!!!

Saturday 28 August 2010

Wo Budha Pipal / वो बूढ़ा पीपल

मेरे होश से खामोश
अपने बुढ़ापे को कोश्ता
कई पीढियो का गवाह
वो बूढ़ा पीपल

मै सोचता क्यों

एक उम्र जिस छाओं तले
"उजरा" भाग चले, खड़ा सोचता
वो बूढ़ा पीपल 

जो कभी रहा बसेरा

किसी बचपन, जवानी बुढ़ापे का
अपने होने का गवाह ढूंढता
वो बूढ़ा पीपल

खड़े जो कभी शान से

जिस टहनिओं पे खेला बचपन
अब तरसता किलकारिओं को
वो बूढ़ा पीपल

लाचार, बेकार सा

छूटता गया अपनों से
पुराना घर सा छुपाते
वो बूढ़ा पीपल

बिता कल खंगालता

मांगता होगा एक और दुहाई
मांगता जवानी या मौत
वो बूढ़ा पीपल

जब भी देखता

टीस सा चुभता
ख्याल आते दादा सा
वो बूढ़ा पीपल


(शंकर शाह)

Thursday 26 August 2010

Bujdili Hin To / बुजदिली ही तो

रात की तन्हाई में जब भी असमान को ओढ़ता हूँ...अपना आवाज़ अपने को हिन् चीरने दौड़ता है...तारे टिमटिमाते हुए मुझे एहसास कराते है मुर्दों के शहर में तुम भी एक हो...और हवा पत्तियो को सहलाते हुए कहता है...तुझमे कुछ तो बाकि है..फिर भी में भीड़ का हिस्सा...आत्मा हर रोज़ सवाल करती और डर तैयार करता जबाब...क्या है..बुजदिली ही तो मेरा ताकत है..बहानो के किताब से बच्चो को ककहरा सिखा तो सकता हूँ...पर सच्चाई के शिलालेख को कैसे मिटाउन...

(शंकर शाह)    

Monday 23 August 2010

Mai Loutna Chahta Hoon / मै लौटना चाहता हूँ

मै लौटना चाहता हूँ...छुट रहे भागमभाग में अपनों के घर...मै लौटना छाहता हूँ...आंशु की तरह सुनी गलिओं में जहाँ बचपन दौड़ा करता था...मै लौटना चाहता हूँ...उस मंदिर के चौखट पर जहाँ झगरा "भगवान  कसम" के नाम पर हिन् मर जाया करता था...मै लौटना चाहता हूँ...माँ के गोद में...जिसकी आंचल जो अब प्यासी है मेरे पसीने आंसू पोछने को..मै लौटना चाहता हूँ...मेरे पेड़दादा अब भी जो मेरे बचपन के निशानिओं को अपने में समेटे रखा है...मै लौटना चाहता हूँ.....:( 



(शंकर शाह)

Friday 20 August 2010

निशिचर रात की गहराइयाँ मुझसे पूछती रही...बता तू ताकता क्या है..मैंने कहा दोस्त कुछ पल और तो निहार लेने दे तेरे पीछे जो उजाला छुपा है..उसे भी हो जाये भरोसा कोई मेरा बाट तकता बैठा है........
 

(शंकर शाह)

Thursday 19 August 2010

Sawdhan Insaniyat Ke Dushman / सावधान इंसानियत के दुश्मन

कही आँशु पे खिलते राजनीती कमल तो कही मुर्दों के बलात्कार पे...हर हाल पे कुछ अपने रोटिओं के सेकते और बहुत है जो लकड़ी की तरह जल रहे...कुछ खामोश चेहरे कई बोलते बुतों में जान डालना चाहते है..क्रांति की स्याही से लिखी हर किताब चिल्ला चिल्ला कर कह रही है.."में दिनों का नहीं दसको, सदियों का घुटता हुआ..काटा गया, लुटा हुआ दिल का शोर हूँ...हर बार खामोश आँहो को समेत कर ज्वाला बनता और हर बार, बार बार खुद को दोहराऊंगा..सावधान इंसानियत के दुश्मन ".. 
 
 
(शंकर शाह)

Saturday 14 August 2010

Jo Bit Raha Hai / जो बीत रहा है

कुछ दूरी तय करने के बाद थकान..बैठ जाना सोचना ये अगर अपने आप हो जाता...आंखे सिकुर कर देने लगती है आकार कैसा होता. सपने देखना बेहतर होने का और आकार देना पत्थर को अपने कल्पनावो को सजाके..थकना तो चलने का प्रतिरूप... सपने साकार करने का रास्ता आसान नहीं. शिप को भी सदियों लग जाते है मोती को आकार देने में..हारना फैसला किस्मत के ऊपर और हारना फैसले के साथ चुनौती स्वीकारते..हर रात के बाद दिन..जो बीत रहा है.. बीत रहा है..............................

Friday 13 August 2010

Budhi Amma / बूढी अम्मा

बूढी अम्मा, पुकारती बिरजू को बीमार है...पर बिरजू है की उसके पास समय ही नहीं ... पापा के पास भी नहीं...मम्मी के पास भी नहीं और तो और बिरजू के पास भी नहीं...घडी के काँटों सा खुद को बना तो लिया है और गर्व है की दुनिया मुझे हीं तो देखती है पूछती है...पर भूल जाते है हर साख की वजूद उसके तनो से है...और तना का वजूद मिटटी से...समय चक्र के संगत में बूढी अम्मा, दादा, पापा  को भूल तो सकते है.. पर वक़्त के चक्र का प्रभाव अपने ऊपर पड़ने से कैसे रोके...

Wednesday 11 August 2010

Kuch to Jaroor Majra Tha / कुछ तो जरूर माजरा था

सड़क पर दूर भीड़ लगी थी
एक जनसमूह का जैसे मेला लगा था 
रात गहरी थी सूझ नहीं रहा था
पर लगा कुछ तो जरूर माजरा था 

कौतहुलवस् मै भी भीड़ का हिस्सा

देखा तो एक लड़का लड़खड़ा रहा था
फिर पूछा, इस लड़के को देखने भीड़
देखा तो जनसैलाब मुस्कुरा रहा था

कुछ तुतलाहट वाली लब्ज में 

कुछ इशारो मै वह भीड़ को कुछ समझा रहा था
मैंने सोचा होगा नसे मै धुत
इसीलिए शायद बडबडा रहा था

कुछ चेहरे था जो अपने बगल

वाले को कुछ समझा रहा था
जब लडखडाता लड़का आये
करीब, तो थप्पर भी लगा रहा था

मै एक सरीफ इज्जतदार नागरिक

की हैसियत , मेरा रुकना नागवार था
मन ने गाली दी जनसमूह को
और मै वहां से निकल गया

सुबह जब न्यूज़ देखा तो

एंकर किसी को भूखे मरते बता रहा था
तस्वीर देखा तो पता चला
वो तो रात वाला लड़का था

चैनल बदला हर चैनल पर

एक सा हीं न्यूज़ आ रहा था
एंकरों को गौड़ से देखा तो ख्याल आया
ये वो वोही है जो थप्पर और पब्लिक को समझा रहा था



(शंकर शाह)

Tuesday 10 August 2010

EK KHAMOSH UFF / एक खामोश उफ़फ

उम्र गाँव के गलिओं की तरह हमसे फासला बनाता रहा...कब बचपना गुजरी कब जवानी आई...जब कुछ नन्हे पाँव दुनिआदारी से कदम मिलाकर चलते है तो बरबस ख्याल आता है अपना अतीत...गरीबी एक कलाकार की तरह है...जो एक निर्बोध, निश्छल, निराकार बचपन को दुनिआदारी के ढांचे में ढाल देता है ...ऐसा उलझ कर रह जाता है शरीर जब तक पता चलता है तब उसके यादों में खुछ नहीं जो तनहा पलो में लबो पे मुस्कराहट लाये.. बस होता है तो लब पे एक खामोश उफ़फ.......
 
 
 
(शंकर शाह)

Saturday 7 August 2010

Insaniyat Ke Khet / इंसानियत के खेत

जो है वो नहीं है...जो नहीं है वो है..कुछ चीजे भावनाओ के साथ ऐसी जुडी होती है..जिसे लाख गलत होने पर भी हम सही साबित करने में तुले होते है..गाँव के सुनसान रास्ते पर पड़े उस शिलालेख की तरह.. भले नाम बदल गया हो गाँव का पर अंकित मिल जायेगा पुराना पता..जाने कई सतको से सुनसान परे इंसानियत के खेत कुछ हरियाली उगना तो चाहती है...पर नजाने कब तक कथित धर्म के ठेकेदार रूपी घासें इंसानियत के फसल को उगने न देगी....
 


(शंकर शाह)

Friday 6 August 2010

Dimag Ke parakhnali Me / दिमाग के परखनली में

मुझे एक आदत रही.. खुद से बात करने की...में चाँद तारो ग्रहों के आविष्कार में उलझा नहीं...उलझा तो सोच के सोच का आविष्कार में...बहुत कुछ मिले ..नए तजुरबो से मिलता रहा..पर फायदा कुछ नहीं उन सब आविष्कारो में और आविष्कारो की तरह दो पहलु निकले...सुलझाता तरह और उलझता रहा....धातुओ में रसायन का मिश्रण करके एक नया आविष्कार तो हो सकता है..पर दिमाग के परखनली में कौन सा रसायन डाले जो क्रोध, लोभ, मोह को समुचित विनाश कर सके...


(शंकर शाह)

Thursday 5 August 2010

Andhera Jitna Bhi / अँधेरा जितना भी

जब भी देखता हूँ आसमान का दामन बादलो से घिरा हुआ....ख्यालो के समुन्द्र में ज्वार भाटा आने लगते है...कैसे आसमान अपने दामन को उस काली परछाई से छुटना चाहता है...अपने सिने में दरार पैदा करता है...एक सबक है "अँधेरा जितना भी गहरा हो छन्भंगुर है " क्योकि उजाला उससे कुछ फासला हीं दूर है....

(शंकर शाह)

Monday 2 August 2010

Samsaan Me Ghar Banaoge / शमशान में घर बनाओगे

जिंदगी के रास्ते में बहुत अजूबे मिलते ...जिनके बारे में हम जितना राय कायम करे वो सब गलत...क्योकि हमारा विचार उनके विचारो के आकाशगंगा तक नहीं पहुँच पाता ..उन  महापुरुषों में सिर्फ इतना होता है " जो हम कर रहे है वो सही है..होना भी चाहिए जिंदगी का एक तजुर्बा होता है उनके पास...जो भी हो..सही आप जितना भी ठहरालो अपने आप को परन्तु इतना तो जरूर है शमशान में घर बनाओगे तो भूत का डर तो रहेगा हीं.......
 

(शंकर शाह)