Friday 26 August 2011

अभी वक़्त है अपनी सोती सोच में आत्मा को जीवित होने दो / Abhi Waqt Hai

कही आँशु पे खिलते राजनीती कमल.. तो कही मुर्दों के बलात्कार पे..हर हाल पे कुछ अपने रोटिओं के सेकते.. और बहुत है जो लकड़ी की तरह जल रहे...कुछ खामोश चेहरे कई बोलते बुतों में जान डालना चाहते है..क्रांति की स्याही से लिखी हर किताब चिल्ला चिल्ला कर कह रही है.."में दिनों का नहीं दसको, सदियों का घुटता हुआ..काटा गया, लुटा हुआ दिल का शोर हूँ...हर बार खामोश आँहो को समेत कर ज्वाला बनता और हर बार, बार बार खुद को दोहराऊंगा..अभी वक़्त है अपनी सोती सोच में आत्मा को जीवित होने दो...
(शंकर शाह)

Monday 22 August 2011

मिलता नहीं मौका बार बार विखर जाने का... बनके राख देश पर...इतिहास के वीर है वो जिनपे लिपटा कफ़न इन्कलाब का...