Tuesday 31 January 2012

बुद्धिजीविता के होड में अपने दिल को नीलाम कर दिया..सोया तो था मै अपने घर में, जागा तो पाया किसी ने मुझे गुलाम कर दिया....
शंकर शाह 

Monday 30 January 2012

Anshan KabTak / अनसन कब तक

मुर्दों के शहर में कुछ घायल छटपटा रहे है जिन्दा रहने की कोशिश में....एक जद्दोजहद एक आखिरी कोशिस है जिन्दा रहने की...कोशिश, हाँ! कोशिश, जहाँ इंसानियत रोटी बन गया है और लालच भूख, वहां अनसन कब तक,

(शंकर शाह)

Saturday 28 January 2012

Parloukik / परलौकिक

एक आविष्कार था जो परलौकिक शब्दार्थ में सायद इंसान रहा होगा..या सायद मानव..भगवान का एक बेहद खुबसूरत आविष्कार ...इसीलिए सायद वो अन्तरिक्ष अनंत से निकलकर अपने आविष्कार के दिलो में बसने लगे..मैंने भी आविष्कार किया था अपने नींद एक सपने को और सपने से एक जिंदगी पर यथार्त का भूख हर आविष्कार को निगल गया..वो सपना था जिसका नियम सायद सच के परिधि पर चुम्बकतव आकर्षण न रखता हो पर मानव, इन्सान और उसके दिल में बसने वाले भगवान, उफ़ सवाल और जबाब न जाने कब तक पृथ्वी के दो धुरी की तरह दुरी बनाये रहेंगे ...

(शंकर शाह)

Saturday 21 January 2012

Generation Gap / जेनेरेसन गेप

वो जिंदगी भर दुनिआदारी के अनुभवों से रेत चुन ज्ञान का मोती बनाते रहे....और हम जेनेरेसन गेप कह के उनके अनुभवों को ठुकराते रहे....
 


(शंकर शाह)

Tuesday 17 January 2012

Sanskaro Ke Hath / संस्कारो के हाथ

बहुत कुछ मौत जैसा अटूट सत्य है लेकिन मै नकारता हूँ ...इसीलिए नहीं की मै खुद और खुद के दायरे मे बंधक हूँ...इसीलिए मेरे सच से बाण से किसी के झूठी भावनाओ के घर मै आग न लग जाये...सोचता हूँ ये कैसी भावना...जहा सोच के बंद कमरे में खुद के द्वारा फैसले और सही साबित किया जाता हो.. जहाँ सच को झूठ और झूठ को सच मानता हो .. दुर्भाग्य जन्मभूमि का है जहाँ  इतिहास के अव्सेशो के चीख को घोंटा जाता है और नया लिखा जाता है कुछ मस्तिक पटलो में एक नए ब्रिजरोपन की तरह..पेड़ हमने बोया पर काटने वाला हम नहीं होंगे..मेरा अन्दर आत्मा चीखता है और में संस्कारो के हाथ उसका आवाज़ घोंट डालता हूँ...तुम खुश रहो...

(शंकर शाह)