Tuesday 23 April 2013

Na Jane Kab Tak / न जाने कब तक

तुम्हारे नजरो से चुराकर रंग, मैंने रंग लिए है मैंने चेहरे अपने ….देखो! ये धोखा नहीं है, ये तो रंग है बदलते दुनिया में, मैंने सिर्फ चेहरे हिन् रंगे है, तुम्हारे मनचाहे रंगों से… न जाने कब तक, ये समझौते की जिंदगी और मुखौटे की आड़ में एक तन्हाइ....न जाने कब तक!

शंकर शाह

Monday 15 April 2013

Swaal / सवाल


मै सवालो के घेरे में कैद हो के रह गया हूँ ....जब तक वह एक सवाल का जबाब खोजता हूँ तब तक उस सवाल के मायने बदल गए होते है.."सवाल" सवाल अगर पथ है तो जबाब भूल भुलैया..जब सब बाधाओ को पार कर मै पहुँच जाता हूँ जवाब के करीब तो सवाल फीर से के सवाल कर बैठता है...जानता नहीं ये सिलसिला कबतक चलता रहेगा पर सवाल जबाब नामक बिल्लीओं के बिच में जिंदगी बन्दर बन के बैठा है…जरूरते लोगो की, मुझे उनके बिच, मेरे जिंदगी को कन्धा दे रखा है वरना बिल्लियाँ लडती नहीं और बन्दर महान नहीं होता ।

शंकर शाह    

Saturday 13 April 2013

Rahashyamayi Dunia / रहश्यमयी दुनिया

एक रहश्यमयी दुनिया है, जहाँ कुछ दिनों से हर रोज़ पहुच जाता हूँ, कोई है जो मिलता है अब हररोज़ मुझे, वो मेरे खामोश कविता की कल्पना नहीं है, कुछ है तो है उसमे, जो मै सिर्फ सुनता हूँ उसे जब वो बोलती है, अच्छा लग रहा है अब मेरे शब्द कागज़ पे सिर्फ उतरते नहीं बतियाते भी है और बिखरते है रंग बनके, जैसे इन्द्रधनुषी सतरंग जो अब ओझल होते नहीं मेरे आँखों से,

शंकर शाह