Saturday 21 December 2013

Jugnoo / जुगनू

सुना है टेलीपेथी से कि तुम्हारी मन कि नजरे भी टकटकी लगाये रहती है दरवाजे पे..... कमाल है, मेरे मन कि नजरे भी जुगनू बन के उडते रहते है तुम्हारे करीब … अब निकलो भी घर से बिना आहट के कि प्यार के नजर में ज्वार भाटा है.…


शंकर शाह    

Friday 6 December 2013

Matlabi Rishte / मतलबी रिस्ते

मै फिर आउंगा, गिरे पत्ते और ओश कि बूंदो कि तरह, कभी किसी के चूल्हे में जलकर आ जाउंगा काम, कभी मिल जाउंगा जमीन में और खाद के साथ मिलकर फ़ोटो सिंथेसिस प्रक्रिया में खुद को पाउँगा । `मै आउंगा, रहूँगा विकल्प बनके मतलबी रिस्तो के बिच और उसको और सींचूंगा अपने होने से ताकि तुम्हारा मतलब जिन्दा रहे और  उसके बिच मै ।

शंकर शाह