Sunday 23 February 2014

Atmgyan / आत्मज्ञान

मै हूँ कई रहस्यो के कई परतो में लिपटा हुआ। 
कभी खुलेगा क्या ये परत, या कोई घाव बन रिसेगा और कर देगा बीमार। या खुद हिन् पर्यास करूँगा और खोलूँगा खुद पे चडे परतो को और पा लूँगा आत्मज्ञान या कोई आयेगा और उघेरेगा करेगा सल्य चिकीत्सा और उघेरेगा एक एक परतो को। 
है उम्मीद की एक दिन खुद के खोज मे,  रहस्य नहीं "मै हूँगा"।

शंकर शाह

Sunday 16 February 2014

Atma Katha

सोचता हूँ कभी लिख दू आत्म कथा फिर झूठ फरेब से उतरता है कुछ शब्द पन्नो पे। फिर कहीं खालीपन सा झूठा सा लगता है सब। सुना है कहीं, आइना सब जानता है पर मेरे और आइने के बिच कहीं तुम बैठी हो। एक सच की मै झूठा हूँ, एक कडवी सच्चाई की तुम एक टूटी पुलिया हो मेरे और झूठ के दुरिओन के बिच।

शंकर शाह