Saturday, 29 January 2011

Maa Bharti / माँ भारती

सपनो के रंगीनिओं में 
अब कोई अप्सरा नहीं आती...
रात अब बचैनिओं के
आंचल में सर रख कर,
करवटे बदलने लगा है...

दिन के भागम भाग से थक कर भी
अब नींद नहीं आती...
दिल के अब कई विभाग हो गए है...
एक कहता है वो कर डालो जो चाहते हो..
एक कहता है नहीं मत करो कुछ...
जिओ जैसे दुनिया चल रहा है...
वरना घर के लोग हीं 
तुम्हे राजनीती का हिस्सा बना देंगे...

एक हिस्सा अब भी कह रहा है
निकल घर से रोंप दे एक पौधा क्रांति का,
जुगनू किसी के घर को रौशन नहीं करते ,
बन जा विष्फोट वतन का,

पर एक हिस्सा कह रहा है
सो जा नींद आ जाएगी 
तुझे क्या , क्यों में झमेले में पड़ता है...
दोस्तों दुआ करो नींद आ 
जाये मुझे, आपकी तरह...
कहीं सुना न सोने वाला पागल हो जाता है!! 

(शंकर शाह)

Friday, 28 January 2011

Bhulti Yado ka Tara / भूलती यादो का तारा


चलते हुए सफ़र में देख रहा हूँ....बाप बेटे का दोस्त तो बन जा रहा है....पर वहीँ बेटा  बाप के वजूद के लिए तरस जा रहा है.... देखे तो बेटे के दोस्त तो बहुत है पर बेटे को कही खो न इस दर हम बाप बनने का फ़र्ज़ भूलते जा रहे है....बुद्धिजीवीता के शिखर पर पहुँच कर ऐसा नहीं लगता की दसको के फासले को हमने सदिओं के दुरिओं में ढाल दिया है जहा बाबूजी के सकल में अब परदादा नज़र आ रहे है या एक स्वप्न जो भूलती यादो का तारा बन गया है ...



(शंकर शाह)

Monday, 24 January 2011

कौन कहता है अल्गावपंथी, उग्रवादी कश्मीर को हिंदुस्तान से अलग नहीं कर सकते....अभी के हालात साफ जाहिर करते है वो कामयाब हुए...आंख बंद सबकुछ देखने का दावा करने वाले बुद्धिजीवी भारतीओं...इतना भी न उदार बन जाओ आपका अपना बेटा आपको बाप कहने पर सर्मिन्दिगी महसूस करे... 

Tuesday, 11 January 2011

Mere Hisse Ka / मेरे हिस्से का

सोचता हूँ क्या करूं ऐसा जो देश के नाम हो जाये..फिर सोचता हूँ धरना, प्रदर्शन, विरोध अब तो नेताओ और उनके चमचो काम रह गया...मै ऐसा क्या करू जो देश के काम आ जाये...विचार के ढृढ़ता से सोचा क्यों न उपवास हो जाये...सायद मेरे हिस्से का दो रोटी महंगाई कम कर जाये.....
(शंकर शाह)