Khud ke Banaye Raho main / खुद बनाये राहो मैं
खुद बनाये राहो मैं खुद को चलाता रहा...
अपने वजूद को अपने हाथो से मिटाता रहा...
दर लगता था खुद से इसीलिए अपने जज्बातों को जलाता रहा...
यूँ तो बना चूका हूँ एक दिवार की सच दस्तक न दे जाये...
पर क्या करता जब सच आइना बन कर सामने आता रहा, डराता रहा...
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