Monday, 31 May 2010

Samkhoute Ki Jindagi / समझौते की जिंदगी

जब पडोसी का गलती देखा तो सोचा प्रतिवाद करू पर पापा का चेहरा याद आ गया....फिर पाठसाला गया वहां गुरूजी का गलती देखा फिर वहां सोचा प्रतिवाद करू पर अंक कट जायेंगे ख्याल आया...बाजार आया वहां देखा कुछ लडको का गलती फिर सोचा प्रतिवाद करू पर मार खाने का डर आया....फिर नौकरी वहां मालिक का शोषण फिर सोचा प्रतिवाद करू पर नौकरी खो देने का डर आया ....इसी तरह डर के साथ समझौते की जिंदगी जी रहा हूँ....कई बहानो के  साथ...ताकि मेरा डर शानवघार  मुखौटे के सामने ढक जाये....
 


(शंकर शाह)

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