Friday, 1 October 2010

Tumhare Safar ka Manchitra / तुम्हारे सफ़र का मानचित्र

जब देखता हूँ रात की कालिमा को...एक नए सवेरे का विश्वास होता है...और दिन के भागमभाग के बाद जरूरी हो जाता कुछ पल अँधेरे का...मेरे जीने के लिए.. मुझे बहुत जरूरी है कल से आज को बांधे रखना..कल के नींव से हीं तो मेरे आज का घर है...सुक्रिया मेरे कल पे मुस्कुराने वालो...धरती के चादर ओढ़े हुए जिस पत्थर को तुमने लहरों में बहाया था वो तुम्हारे हाथ से फिसल चूका तुम्हारे सफ़र का मानचित्र था...  


(शंकर शाह)

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