MeRi KaHaNi
Wednesday, 8 December 2010
हम गम हीं गम में खुद को जलाते रहे...उनका प्यार तो देखो हमारे गम से घर का बाती जलाते रहे...गम में हमारे आंखे नदी बन गई...और उन बेशर्मो को देखो कपडे खोल उसमे नहाते रहे...
(शंकर शाह)
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