Thursday, 19 July 2012

Jhhutha Nind / झूठा नींद

कुछ आत्माओ के आवाज़ बढ़ रहे है मेरे आत्मा में सोये इंसान को जगाने के लिए...वो पविव्त्र आवाज़ है ऐसा नहीं कहता.. पर कुछ तो है, उस आवाज़ का स्पर्श झंझोर्ता है मेरे अन्दर के इन्सान को...एक गहरी नींद है जो सपनो में मुझे इंसान बनाये हुए है.. और मै जानता भी हूँ की मै नींद में हूँ...मै सोया हुआ हूँ, एक आलस है जो कहती है की तू कर्मवीर है..पर वो आवाज़ जो झ्न्झोर रही है जगाने के लिए ?...सपने और सच का द्वंध है.. उम्मीद है मै जग जाऊंगा इस से पहले की झूठा नींद हमेशा के लिए न सुला दे मुझे....

(शंकर शाह)

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