कौन मिला, कहा मिला, हम तो वही खड़े है...जहाँ से सफ़र की सुरुआत थी...अजीब
उलझन है....कदमो के निशान सड़क पे है हिन् नहीं पर लगता है की थक गया
हूँ....वो कौन सा सफ़र था या सफ़र का फैसला जो बाकि है मंजिल के लिए....मै
हूँ.... हाँ सिर्फ मै हिन् तो हूँ...दूर दूर तक सिर्फ दिख रहा है तो जमीन
और आसमान के बिच की खाई....
शंकर शाह
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