Tuesday, 24 March 2009

किसी का घर जला तो / KISI KA GHAR JALA TO


हमने दुसरे के जख्मो पे हंसा,

किसी का घर जला तो मनाई दिवाली,

अब ख़ुद के जख्म पे रोये जा रहे है,

घर जल रहा है ,हम जल रहे है ,

कोई बचायेगा हमे भी,

यह उम्मीद रखे भी तो कैसे!! …


राख हुआ था जलकर आत्मा हमारा,

आश रखता कोई अमन की तो कैसे,

जलकर रख हुआ था जमीर हमारा,

“माँ भारती ” रोती भी न तो कैसे !!


हम तो बात करते हिन् न थे,

दो बोल प्रेम के,

हमारा घर जलता भी,

न तो कैसे !!


सांसे आखरी है,

गम तो बस इतना है,


आए ना काम कभी किसी के,

मांगे खुदा से,

खुदा से जिंदगी मांगे भी तो कैसे,


लेखक:शंकर शाह


1 comment:

  1. सांसे आखरी है,

    गम तो बस इतना है,
    " these two lines are core of the poem.....nice writing"

    regards

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