हम आह किए भी तो हो गए बदनाम ,
और वो जख्म पे जख्म दिए ,
उनको उसका कोई गिला नही !
हम दर बदर भटकते रहे ,
राहें मंजिल की तलाश मैं ,
और उन्हें मंजिल मिला तो भी
उन्हें लगा कुछ मिला नही !!
सूरज है तो धरा का जान !
उसका एक तपिश ने उसे
कर दिया बदनाम !!
लाख जफाये हमने की ,
बेवफाई कर न पाए ,
नफरत हिन् मिला राहे नसीब मैं ,
और मिला है प्यार मैं येही इनाम !!
हम आह भी किए तो हो गए बदनाम !!
बहुत ही अच्छी रचना..लिखते रहिये
ReplyDeleteबदनाम होंगे तो क्या,नाम तो
ReplyDeleteहोगा | टिप्पणियों में से वर्ड-वेरीफिकेशन हटाने का अनुरोध है