Saturday, 19 March 2011

दुनियादारी के साथ भागते कदम और छुट रहे अपनों से हम...हम से मै हो रहा अपने आप के भीतर जरूरी हो जाता है एक और होलिका दहन की....और दहन के बाद जश्न...मै को जलाकर कोशिस करूँगा की बुत बन रहे "हम" को फिर से अपने अन्दर ला सकू....ताकि धरती सी हाथ मै चाँद का कटोरा इन्द्रधनुषी रंग मुझपे बिखेर सके.. ये बिना सोचे हुए की सामने वाले की रंग न बदल जाये....
"होली के शुभअवसर पर आप सभी को परिवार सहित ढेरो सुभकामनाये"....
 
 
 
(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment