भीग रहा हूँ पर बरसात से नहीं...आत्मा के बूंदों से ...दिमाग की छतरी बचने का कोसिस कर रहा है...आत्ममंथन का मेघ बहुत बलवान है...मै बचना चाहता हूँ...पर डरता हूँ बहाव और ठहराव के बिच में खो न जाऊ...मेरा अस्तित्व, मानवता और मेरा जीवन .. बरसात और छतरी के बिच में धमासान का मुखदर्शक है...
(शंकर शाह)
No comments:
Post a Comment