Monday, 30 January 2012

Anshan KabTak / अनसन कब तक

मुर्दों के शहर में कुछ घायल छटपटा रहे है जिन्दा रहने की कोशिश में....एक जद्दोजहद एक आखिरी कोशिस है जिन्दा रहने की...कोशिश, हाँ! कोशिश, जहाँ इंसानियत रोटी बन गया है और लालच भूख, वहां अनसन कब तक,

(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment