Saturday, 28 January 2012

Parloukik / परलौकिक

एक आविष्कार था जो परलौकिक शब्दार्थ में सायद इंसान रहा होगा..या सायद मानव..भगवान का एक बेहद खुबसूरत आविष्कार ...इसीलिए सायद वो अन्तरिक्ष अनंत से निकलकर अपने आविष्कार के दिलो में बसने लगे..मैंने भी आविष्कार किया था अपने नींद एक सपने को और सपने से एक जिंदगी पर यथार्त का भूख हर आविष्कार को निगल गया..वो सपना था जिसका नियम सायद सच के परिधि पर चुम्बकतव आकर्षण न रखता हो पर मानव, इन्सान और उसके दिल में बसने वाले भगवान, उफ़ सवाल और जबाब न जाने कब तक पृथ्वी के दो धुरी की तरह दुरी बनाये रहेंगे ...

(शंकर शाह)

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