Friday, 25 June 2010

Kranti Ki Suruaat / क्रांति की सुरुआत

रोये बहुत रोये फिर लग गये काम में वो..पर था कोई  जो रोया नहीं..आंशुओ को पीता रहा और गम से अपने क्रांति की गोदाम को भरता रहा.उसे बनना था क्रांतिवीर जो ज़माने का आवाज़ बनता या तालिबान, माओबादी, या आतंकवाद का एक थूकदान...जब अपना आवाज़ अपने को चिर के अपने तक पहुँचता है तो एक क्रांति की सुरुआत होती है..पर क्रांति की परिभासा कैसा हो वो क्रांतिवीर पर निर्भर करना है..
 
 
(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment