कहता है जमाना क्यों सोचता इतना..कहता है क्यों लिखता है कड़वाइ को..क्यों नहीं जीता आज को.. क्यों डराता है सच्चाई को...बहुत "क्यों" है दोस्तों जो हर रोज सामना करता हूँ.. यूँ रेत न बनता पत्थर अगर सदियों तक ज़माने के तपिश ने उसे तपाया न होता..मै आज "हम" होता अगर सच्चाई को गले न लगाया होता...
(शंकर शाह)
बहुत सही!
ReplyDeleteSukriya Madhav......:)
ReplyDeleteSukriya Udan Tashtari Ji........:)