Saturday 5 June 2010

Sawalo ke Ghere / सवालो के घेरे

इंसान सवालो के घेरे में कैद सा हो के रह गया....जब तक वह एक सवाल का जबाब खोजता है तब तक उस सवाल के मायने बदल गए होते है.."सवाल" सवाल अगर पथ है तो जबाब भूल भुलैया..जब सब बाधाओ को पार कर हम पहुँच जाते है तो सवाल फीर से एक सवाल कर बैठता है...मतलब ये है की सवाल के उलझन को जितना सुलझाना चाहेंगे उतना उलझता जाता है..पर ऐसा नहीं है की सुलझेगा नहीं..बस फैसला यह करना है की पहेले उलझना है की नहीं....



(शंकर शाह)

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