Sunday 16 February 2014

Atma Katha

सोचता हूँ कभी लिख दू आत्म कथा फिर झूठ फरेब से उतरता है कुछ शब्द पन्नो पे। फिर कहीं खालीपन सा झूठा सा लगता है सब। सुना है कहीं, आइना सब जानता है पर मेरे और आइने के बिच कहीं तुम बैठी हो। एक सच की मै झूठा हूँ, एक कडवी सच्चाई की तुम एक टूटी पुलिया हो मेरे और झूठ के दुरिओन के बिच।

शंकर शाह

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