Tuesday, 20 September 2011

TimTimate Tare / टिमटिमाते तारे

लडखडाते कदम से ख्वाहिसों के तितली कभी आंगन के उड़ा करती थी...अभिलाषा के पैर पंख लगा के उरते थे, नन्ही सी हथेली में इन्द्रधनुषी रंग को कैद करने...उचल कूद के साथ कभी कई सपने किसी आँखों के गर्भ में पलते थे.. टिमटिमाते तारे अंधियार सपनो में लालटेन होता था किसी का...में जागता हूँ अभी नींद से डरकर...जब से देखा है मेरे प्रतिरूप में, तितलिओं के पीछे भागते कदम से मेरे बच्चे का...

(शंकर शाह)

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