Tuesday 20 July 2010

Aina Bhi To / आइना भी तो

अपने हथेली को गौर से देखा तो ऐसा लगा कुछ मेरे हाथो से छुट चूका है...कुछ ऐसा है जो में भूल रहा हूँ...यादो के समंदर में गोता लगाकर ढूंढने लगा वो मोती..मिला भी तो एक मजदूर के रूपमें मेरा जीवन चक्र..भागमभाग भरी जिंदगी में भागता रहा कब जीवन चक्र बुढ़ापे के देहलीज पर पहुँच गया पता हीं न चला..बच्चो के चेहरे को देखकर आइना भी तो झूठ बोलता रहा..


(शंकर शाह)

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