Saturday 29 January 2011

Maa Bharti / माँ भारती

सपनो के रंगीनिओं में 
अब कोई अप्सरा नहीं आती...
रात अब बचैनिओं के
आंचल में सर रख कर,
करवटे बदलने लगा है...

दिन के भागम भाग से थक कर भी
अब नींद नहीं आती...
दिल के अब कई विभाग हो गए है...
एक कहता है वो कर डालो जो चाहते हो..
एक कहता है नहीं मत करो कुछ...
जिओ जैसे दुनिया चल रहा है...
वरना घर के लोग हीं 
तुम्हे राजनीती का हिस्सा बना देंगे...

एक हिस्सा अब भी कह रहा है
निकल घर से रोंप दे एक पौधा क्रांति का,
जुगनू किसी के घर को रौशन नहीं करते ,
बन जा विष्फोट वतन का,

पर एक हिस्सा कह रहा है
सो जा नींद आ जाएगी 
तुझे क्या , क्यों में झमेले में पड़ता है...
दोस्तों दुआ करो नींद आ 
जाये मुझे, आपकी तरह...
कहीं सुना न सोने वाला पागल हो जाता है!! 

(शंकर शाह)

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