Wednesday 11 August 2010

Kuch to Jaroor Majra Tha / कुछ तो जरूर माजरा था

सड़क पर दूर भीड़ लगी थी
एक जनसमूह का जैसे मेला लगा था 
रात गहरी थी सूझ नहीं रहा था
पर लगा कुछ तो जरूर माजरा था 

कौतहुलवस् मै भी भीड़ का हिस्सा

देखा तो एक लड़का लड़खड़ा रहा था
फिर पूछा, इस लड़के को देखने भीड़
देखा तो जनसैलाब मुस्कुरा रहा था

कुछ तुतलाहट वाली लब्ज में 

कुछ इशारो मै वह भीड़ को कुछ समझा रहा था
मैंने सोचा होगा नसे मै धुत
इसीलिए शायद बडबडा रहा था

कुछ चेहरे था जो अपने बगल

वाले को कुछ समझा रहा था
जब लडखडाता लड़का आये
करीब, तो थप्पर भी लगा रहा था

मै एक सरीफ इज्जतदार नागरिक

की हैसियत , मेरा रुकना नागवार था
मन ने गाली दी जनसमूह को
और मै वहां से निकल गया

सुबह जब न्यूज़ देखा तो

एंकर किसी को भूखे मरते बता रहा था
तस्वीर देखा तो पता चला
वो तो रात वाला लड़का था

चैनल बदला हर चैनल पर

एक सा हीं न्यूज़ आ रहा था
एंकरों को गौड़ से देखा तो ख्याल आया
ये वो वोही है जो थप्पर और पब्लिक को समझा रहा था



(शंकर शाह)

2 comments:

  1. उफ़्……………भयानकता और हृदयविहिनता को आपने जिस तरह संजोया है वो काबिल-ए-तारीफ़ है।

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