Tuesday 17 January 2012

Sanskaro Ke Hath / संस्कारो के हाथ

बहुत कुछ मौत जैसा अटूट सत्य है लेकिन मै नकारता हूँ ...इसीलिए नहीं की मै खुद और खुद के दायरे मे बंधक हूँ...इसीलिए मेरे सच से बाण से किसी के झूठी भावनाओ के घर मै आग न लग जाये...सोचता हूँ ये कैसी भावना...जहा सोच के बंद कमरे में खुद के द्वारा फैसले और सही साबित किया जाता हो.. जहाँ सच को झूठ और झूठ को सच मानता हो .. दुर्भाग्य जन्मभूमि का है जहाँ  इतिहास के अव्सेशो के चीख को घोंटा जाता है और नया लिखा जाता है कुछ मस्तिक पटलो में एक नए ब्रिजरोपन की तरह..पेड़ हमने बोया पर काटने वाला हम नहीं होंगे..मेरा अन्दर आत्मा चीखता है और में संस्कारो के हाथ उसका आवाज़ घोंट डालता हूँ...तुम खुश रहो...

(शंकर शाह)

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