Tuesday, 20 September 2016

Do Ankhen

कहीं एक खिड़की है जो खुली रहती है मेरे इन्तज़ार में... उसी के इन्तज़ार ने मुझे यायावर और मेरे सफ़र को रंगीन बना दिया है ... कभी मिले तुम्हें दो आँखें उस खिड़की पे राह तकते मेरा ...तो कह देना ...ये कुछ हसीन कैन्वस है तुम्हारे इन्तज़ार और उसके सफ़र के बीच का !

शंकर शाह

Saturday, 6 February 2016

Diwali / दिवाली

मेरी नजरे तंगी है तुम्हारे खिड़की पे और सांसो का आना जाना तुम्हारे दरवाजे होकर गुजर रही है. 
मिलाओ नजर तो फिर इश्क़ कर लूँ  की अभी अभी दिल के कोने में एक दिवाली की रात हुई है.... 

शंकर शाह

Wednesday, 28 May 2014

एक रात बैठूँगा सर्द परे रिश्तो के बिच...और तापुन्गा उसे पुराणी ख्यालो से... जलते दिलो के बिच से उठाऊंगा कुछ पलों को अंगीठी बनाके और रख दूंगा....एक बार फिर.....एक रात....सर्द पड़े हमारे रिश्ते को सेंकने के लिए.....

शंकर शाह

Sunday, 23 February 2014

Atmgyan / आत्मज्ञान

मै हूँ कई रहस्यो के कई परतो में लिपटा हुआ। 
कभी खुलेगा क्या ये परत, या कोई घाव बन रिसेगा और कर देगा बीमार। या खुद हिन् पर्यास करूँगा और खोलूँगा खुद पे चडे परतो को और पा लूँगा आत्मज्ञान या कोई आयेगा और उघेरेगा करेगा सल्य चिकीत्सा और उघेरेगा एक एक परतो को। 
है उम्मीद की एक दिन खुद के खोज मे,  रहस्य नहीं "मै हूँगा"।

शंकर शाह

Sunday, 16 February 2014

Atma Katha

सोचता हूँ कभी लिख दू आत्म कथा फिर झूठ फरेब से उतरता है कुछ शब्द पन्नो पे। फिर कहीं खालीपन सा झूठा सा लगता है सब। सुना है कहीं, आइना सब जानता है पर मेरे और आइने के बिच कहीं तुम बैठी हो। एक सच की मै झूठा हूँ, एक कडवी सच्चाई की तुम एक टूटी पुलिया हो मेरे और झूठ के दुरिओन के बिच।

शंकर शाह

Saturday, 21 December 2013

Jugnoo / जुगनू

सुना है टेलीपेथी से कि तुम्हारी मन कि नजरे भी टकटकी लगाये रहती है दरवाजे पे..... कमाल है, मेरे मन कि नजरे भी जुगनू बन के उडते रहते है तुम्हारे करीब … अब निकलो भी घर से बिना आहट के कि प्यार के नजर में ज्वार भाटा है.…


शंकर शाह    

Friday, 6 December 2013

Matlabi Rishte / मतलबी रिस्ते

मै फिर आउंगा, गिरे पत्ते और ओश कि बूंदो कि तरह, कभी किसी के चूल्हे में जलकर आ जाउंगा काम, कभी मिल जाउंगा जमीन में और खाद के साथ मिलकर फ़ोटो सिंथेसिस प्रक्रिया में खुद को पाउँगा । `मै आउंगा, रहूँगा विकल्प बनके मतलबी रिस्तो के बिच और उसको और सींचूंगा अपने होने से ताकि तुम्हारा मतलब जिन्दा रहे और  उसके बिच मै ।

शंकर शाह