Thursday 16 September 2010

Buto Ke Mandir ka / बुतों के मंदिर का

किसी सफ़र मे चलने के लिए जरूरी हो जाता है होना किसी पदचिन्ह का...अनुशरण करना या तो जरूरी होता है, संस्कार या तो मजबूरी..पर हाल मे अनुशरण करना है..हाँ कुछ सरफिरे चाहते तो  है इंसानियत के सफ़र को आसान बनाना पर वो तो पागल होते है.. क्योकि वो चमत्कार नहीं चीत्कार करते है हमारे आत्मा के गहराइयों में..पर में खुद को पागल नहीं समझता..इसीलिए मै भी तो बुतों के मंदिर का एक उपासक हूँ..जहाँ भावनाओ को अहंकार के तलवार से हररोज़ बलि दिया जाता है...

(शंकर शाह)

2 comments:

  1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आपने पूरा उपयोग किया है

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  2. Sukriya Alka Ji...Apka blog padha Bahut achha laga...

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