Wednesday, 19 February 2025

कहीं दूर क्षितिज में जब मेरा एकाकी निराशा से मिल रहा होता था

कहीं दूर क्षितिज में जब मेरा एकाकी निराशा से मिल रहा होता है मृगतृष्णा बन जब ज़िंदगी छल रही होती है और जब समय भूलभुलैया बन जाता है तो तुम ध्रुव तारा की तरह की मिल रही होती हो मुझमें मेरे से कहीं मैं ज़िंदा हूँ तो तुम धड़कन हो है रोशन दुनिया, ख़ुशनुमा है बस तुमसे शंकर शाह

एक वादा था

कुछ लम्हों को चुन के मैंने बुना था तुम्हें…….. जैसे, किसी चित्रकार ने एक केनवास पे अपने प्यार को उतारा हो। इंद्रधनुषि तुम हो तो मेरा प्यार भी संगीत है … कई ज़िंदगी जिया है एक तुम्हें पाके…. जैसे एक वादा था और हक़ीक़त तुम हो … शंकर शाह

कई पर्तों में मैंने लिखा है प्रेम

कई लम्हों को सींचा तब स्याही बनी अनगिनत यादों को तब पन्ने वक़्त को रोककर जब यादों और लम्हों को मिलाया तब कई पर्तों मैं उतरा मेरा प्रेम और ऐसे हीन मैं कई पर्तों मैं, मैंने लिखा मेरा प्रेम! शंकर शाह

एक प्रेम संगीत

रात का ख़ामोश प्रहर जब दुधिया रोशनी मैं घोलता है यादों का चाशनी ना जाने क्यों, सिर्फ़ तुम होती हो मानो जैसे संगीत, तुम्हारा संग और साँसों मैं ख़ुशबू गुनगुना रही हो एक प्रेम संगीत ! शंकर शाह

एक साल फिर गुज़र गया!

एक साल फिर गुज़र गया जैसे मुट्ठी बंद हाथो से रेत पिछले साल की तरह इस साल भी सपने मलिन रहे और ख़्वाब अधूरे जाने क्यो जैसे जैसे जिंदगी के साल कम हो रहे है वैसे वैसे छटपटाहट बढ़ती जा रही है लौटने को फिर से एक बार बचपन मैं. मैं और मेरी ख्वाहिशे, किसी दिन ऐसे हीन खुदकुशी कर लेंगे और दुनिया कहेगी देखो वो बड़े लोग ! शंकर शाह

Tuesday, 20 September 2016

Do Ankhen

कहीं एक खिड़की है जो खुली रहती है मेरे इन्तज़ार में... उसी के इन्तज़ार ने मुझे यायावर और मेरे सफ़र को रंगीन बना दिया है ... कभी मिले तुम्हें दो आँखें उस खिड़की पे राह तकते मेरा ...तो कह देना ...ये कुछ हसीन कैन्वस है तुम्हारे इन्तज़ार और उसके सफ़र के बीच का !

शंकर शाह

Saturday, 6 February 2016

Diwali / दिवाली

मेरी नजरे तंगी है तुम्हारे खिड़की पे और सांसो का आना जाना तुम्हारे दरवाजे होकर गुजर रही है. 
मिलाओ नजर तो फिर इश्क़ कर लूँ  की अभी अभी दिल के कोने में एक दिवाली की रात हुई है.... 

शंकर शाह