Monday 28 January 2013

Jaroorate / जरूरते

थका, हारा हुआ एक पथिक हूँ। दसको से अपने अन्दर खुद को खोज रहा एक असफल प्रयासकर्ता। एक सफ़र है अंतहीन सफ़र, कभी लगता है मेरा मंजिल मिल गया और कभी सफ़र दिशाहीन। थका हुआ शरीर चल रहा है जैसे की एक आम आदमी । खुद के दौड़ से परे, जब पहियों को देखता हूँ तो बस इतना ख्याल आता है, सायद इसे बर्तन बनाने के लिए बनाया गया होगा पर जरूरते गाड़ी बन गई।

शंकर शाह

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