नया साल नया कैलेंडर और नयी तारीखें। प्रकिती और प्राकृतिक संरचना, बदलाव
के पहिओं पे टहलता हुआ बहुत आगे निकल आया है एक बेहतर और बेहतर बदलाव के
साथ। वहीँ हम चिपके हुए है एक झूठी बोझ के साथ संस्कारी बोड़े के साथ, ये
प्रमाण है हमारे आदिम होने का। जहाँ बदलाव प्राकृतिक है वही हम बदलाव के
बिच ग्लोबल वार्मिंग। एक उम्मीद कैलेंडर के बदलते पन्नो के साथ की हम
संकीर्ण संस्कारी पन्नो को उलट के एक नया पन्ना जोड़े ताकि आने वाली सदियाँ
गाली देने के बजाय वो पन्ने पलते और लिखदे नया कुछ।
शंकर शाह
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