Tuesday 4 October 2011

Nam Ankho Se / नम आँखों से

कुछ पल दिमाग के कैद से निकल के...फ़ैल जाते है आँखों के अंतरिक्ष में...कभी ये अन्तरिक्ष के आकाशगंगा से कैद हुए तारे है ...पर अब ये मस्तिक के किसी पेटी में कैद हो गए है...अब जब भी खोलता हूँ बंद पेटी और  देखता हूँ इन्हें..नम आँखों से एक मुस्कान होता है होंठो पर

(शंकर शाह) 

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