Saturday 15 October 2011

Kayro Ke Basti / कायरो के बस्ती

कायरो के बस्ती
में एक भीड़ देखा
नोच रहे है गिद्धों की
तरह अपने आत्मा को
और विचार आइने में
खूबसूरती धुंध रहे है

बहुत कुछ है करना चाहिए

पर कुछ हिन् बस में है
की जो वो कर सकते है
जो की दुसरे की आंच पे
अपना रोटी सेंकना है

कौन कहता है यहाँ

राजनीति सिर्फ नेता करते है
इस गाँव के हर चेहरे पे
लोमरी मुखौटा लगा बैठा है
कायरता को बटुआ बना
पीछे के जेब में दबा रखा है

नोच रहे है खुद को

जानते है ये
पर बहानो के कवच से
खुद को बचाए रखा है

धुप में पैर सेंकते

हिन् नहीं ये बंधू
और कहते है आज
चांदनी में आग है


(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment