एक रात बैठूँगा सर्द परे रिश्तो के बिच...और तापुन्गा उसे पुराणी ख्यालो से... जलते दिलो के बिच से उठाऊंगा कुछ पलों को अंगीठी बनाके और रख दूंगा....एक बार फिर.....एक रात....सर्द पड़े हमारे रिश्ते को सेंकने के लिए.....
शंकर शाह
No comments:
Post a Comment