Wednesday, 19 February 2025

एक साल फिर गुज़र गया!

एक साल फिर गुज़र गया जैसे मुट्ठी बंद हाथो से रेत पिछले साल की तरह इस साल भी सपने मलिन रहे और ख़्वाब अधूरे जाने क्यो जैसे जैसे जिंदगी के साल कम हो रहे है वैसे वैसे छटपटाहट बढ़ती जा रही है लौटने को फिर से एक बार बचपन मैं. मैं और मेरी ख्वाहिशे, किसी दिन ऐसे हीन खुदकुशी कर लेंगे और दुनिया कहेगी देखो वो बड़े लोग ! शंकर शाह

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