Tuesday, 10 August 2010

EK KHAMOSH UFF / एक खामोश उफ़फ

उम्र गाँव के गलिओं की तरह हमसे फासला बनाता रहा...कब बचपना गुजरी कब जवानी आई...जब कुछ नन्हे पाँव दुनिआदारी से कदम मिलाकर चलते है तो बरबस ख्याल आता है अपना अतीत...गरीबी एक कलाकार की तरह है...जो एक निर्बोध, निश्छल, निराकार बचपन को दुनिआदारी के ढांचे में ढाल देता है ...ऐसा उलझ कर रह जाता है शरीर जब तक पता चलता है तब उसके यादों में खुछ नहीं जो तनहा पलो में लबो पे मुस्कराहट लाये.. बस होता है तो लब पे एक खामोश उफ़फ.......
 
 
 
(शंकर शाह)

2 comments: