Tuesday, 31 August 2010

Kutch Khusboo Bikherte / कुछ खुशबू बिखेरते

रोज के भागमभाग के बिच मेरे मरते ख्वाहिशो से..अकेलेपण की खामोश चीख रात का चादर लिए दिल में एक दिलासा...रेत से पत्थर बनते फासले के बिच..रेगिस्तान में कुछ जीवन तो है ..थक चूका पैरो मे जीने ख्वाहिस.. चाँद को कागज़.. तारो के कलम से बनाता एक चेहरा..हवा घुटन भरी सांसो के बिच कुछ खुशबू बिखेरते हुए...ऐसे जैसे हर मौत के आहट पर एक बार फिर से जीने की तमन्ना..

 
 
(शंकर शाह)

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