Saturday, 28 August 2010

Wo Budha Pipal / वो बूढ़ा पीपल

मेरे होश से खामोश
अपने बुढ़ापे को कोश्ता
कई पीढियो का गवाह
वो बूढ़ा पीपल

मै सोचता क्यों

एक उम्र जिस छाओं तले
"उजरा" भाग चले, खड़ा सोचता
वो बूढ़ा पीपल 

जो कभी रहा बसेरा

किसी बचपन, जवानी बुढ़ापे का
अपने होने का गवाह ढूंढता
वो बूढ़ा पीपल

खड़े जो कभी शान से

जिस टहनिओं पे खेला बचपन
अब तरसता किलकारिओं को
वो बूढ़ा पीपल

लाचार, बेकार सा

छूटता गया अपनों से
पुराना घर सा छुपाते
वो बूढ़ा पीपल

बिता कल खंगालता

मांगता होगा एक और दुहाई
मांगता जवानी या मौत
वो बूढ़ा पीपल

जब भी देखता

टीस सा चुभता
ख्याल आते दादा सा
वो बूढ़ा पीपल


(शंकर शाह)

No comments:

Post a Comment