Wednesday 23 February 2011

Galib Khyal Jo Achha hai / " ग़ालिब " ख्याल जो अच्छा है

कई बार सवाल होता है ..जो जी रहे है क्या येही जिंदगी है ..सवाल खुद से बहुत सारे सवाल करता रहता है ..और जबाब छुपान छुपाई खेलता है भूलभुलैया रूपी जबाब मे..जो भी हो हम भी एक मोड़ पर फैसला कर लेते है ..जो पल है जिओ...आखिर खुद को धोखा देने का "ग़ालिब"  ख्याल जो अच्छा है..

Monday 14 February 2011

Darpan Dikha Raha / दर्पण दिखा रहा

लम्हे यूँ भागते रहे जैसे उसके पर निकल आये हो...बचपन कब ढल के जवानी हुआ और जवानी धीरे धीरे बुढ़ापे की और...बंद दरवाजा करके बहुत बार सोचता हूँ बुढ़ापे की आहट मेरे दरवाजे पर न हो...अब तो घर के बुजुर्ग भी तो नहीं रहते मेरे साथ...फैसलों के फासले में जवानी बहुत बड़ा फासला बना चूका है...अब तरेरती आंखे बच्चो की दर्पण दिखा रहा है..और दीवाल में टंगे अपने ठहाके लगा रहे है..

(शंकर शाह)