Saturday 24 September 2011

Na Jane Kyo / न जाने क्यों ?

एक लाश तंगी थी
चौराहे के नीम से
रस्सी उसे समेत ,
रही थी खुद में
जैसे कृष्ण सुदामा
का मिलन हो रहा था,
न जाने क्यों
कृष्ण इतना इतना
दीवाना हो रहा था
न जाने क्यों

सत: आंखे अश्रुविहीन थे

और कुछ आंखे
क्यों हुआ सोच रहा था
हाँ ! सवाल तो था
इस बार पानी अच्छी हुई थी
सुखा का मार न पड़ा था 
कर्जे के बिज से, इस
बार
फसल अच्छा हुआ था,
कोई बीमारी भी तो न थी उसे
और सरकार के आँकरो से
वो गरीब भी तो न था,
क्योंकी पचास से ज्यादा तो
उसके अम्मा के दवा में जाता था,

हाँ बिटिया भी तो

व्याह
लायक हो रही थी
शायद सेल्समेन सा
दौड़ता दौड़ता थक गया था ,
नहीं! अभी कैसे थक
सकता था वो
अभी अभी हीं तो
उसके बच्चे का शहर  
के स्कूल में
दाखिला हुआ था,

कल सुना था मैंने उसे
अगले साल का फसल
कर्जे के आधे दामो में
बिका था,
सरकार ने तो !
लगाई थी दुकान
फीर न जाने क्यों
वो नेताजी के

भतीजे को फसल बेचा !

हाँ सवाल तो था
न जाने क्यों ?


(शंकर शाह)




 

Tuesday 20 September 2011

TimTimate Tare / टिमटिमाते तारे

लडखडाते कदम से ख्वाहिसों के तितली कभी आंगन के उड़ा करती थी...अभिलाषा के पैर पंख लगा के उरते थे, नन्ही सी हथेली में इन्द्रधनुषी रंग को कैद करने...उचल कूद के साथ कभी कई सपने किसी आँखों के गर्भ में पलते थे.. टिमटिमाते तारे अंधियार सपनो में लालटेन होता था किसी का...में जागता हूँ अभी नींद से डरकर...जब से देखा है मेरे प्रतिरूप में, तितलिओं के पीछे भागते कदम से मेरे बच्चे का...

(शंकर शाह)

Friday 16 September 2011

अन्ना आन्दोलन

अन्ना आन्दोलन के खिलाफ बोलने वालो से निवेदन: १. आप अगर ज्ञानी है तो, आपने समाज बदलाव में कितना योगदान दिया है?
२. अगर आपके पास विकल्प है आन्दोलन का तो, अभी तक कहा सो रहे थे?
३. अगर सो नहीं रहे थे और प्रयास कर रहे थे बदलाव का तो, फेसबुक और ब्लॉगर के गलियो से निकल कर पंचायत के चौबारे तक क्यों नहीं आये?
४, अगर व्यवशाय,नाम कमाने की कोशिस कर रहे तो, इतना याद रखिये जिंदगी जी रहे है.पर आपका जिंदगी आने वाली पीढ़ी पर बोझ और गाली की तरह होगी ?
हर सिक्के के दो पहलु होते है.जरूरी ये है वो सिक्का काम का हो

Wednesday 7 September 2011

मौत के दहलीज पे जिन्दा है एक लाश..चीरहरित बेबसी.. अब कफ़न भी उसका बाज़ार में है..  

(आज के दिल्ली कोर्ट विष्फोट पर माँ भारती का दर्द कुछ ऐसा हीं होगा )


(शंकर शाह)

Thursday 1 September 2011

Bahao Aur Thahrao / बहाव और ठहराव

भीग रहा हूँ पर बरसात से नहीं...आत्मा के बूंदों से ...दिमाग की छतरी बचने का कोसिस कर रहा है...आत्ममंथन का मेघ बहुत बलवान है...मै बचना चाहता हूँ...पर डरता हूँ बहाव और ठहराव के बिच में खो न जाऊ...मेरा अस्तित्व, मानवता और मेरा जीवन .. बरसात और छतरी के बिच में धमासान का मुखदर्शक है...

(शंकर शाह)