Saturday 31 July 2010

Hey Bhagwan Ye Kaisi hai Bidai / हे भगवान ये कैसी है बिदाई,

जिसके साथ खेला कूदा,
जिसके साथ अकेला की लड़ाई
जिसके खुशी से खुशी होता,
जिसके गम पे दिल हो भर आई

हे भगवान ये कैसी है बिदाई,

मेरे गलतियो एवज मार से बचाने
वाली, जो मेरे लिए खुद मार खाई
जिसके कारन कभी अकेला न समझा,
न कभी दोस्तों की कमी महसूस हो पाई

हे भगवान ये कैसी है बिदाई,

साथ चलते चलते जो गुडिया थी, अब बड़ी
है हो आई, जो बहन थी, अब बेटी सी है
साईं , जिसे कभी समझा नहीं पराया धन
आज वोही कौन सी मोड़ पे है आई

हे भगवान ये कैसी है बिदाई,

जिस सिने में सिर्फ पत्थरो का डेरा था
उस सिने में भी है मोम पिघल आई
जो कल दुनिया दारी  के चक्कर में पहाड़
बन गया था, उसकी आंख भी भर आई

हे भगवान ये कैसी है बिदाई,

जिन आँखों को ज़माने ने रेगिस्तान
कहा, जिस दिल को कहा पत्थर 
उन्ही आँखों में ये कैसी नमी है आई 
हे भगवान ये कैसी है बिदाई,

किसी से बेटी, मुझ से बहन की
आज हो रही है जुदाई
हे ऊपर वाले ये कैसी रित
एक जीवन मुझसे हो रही पराई

हे भगवान ये कैसी है बिदाई,



(शंकर शाह)

Friday 30 July 2010

Kuch to Tha Un Yado Me / कुछ तो था उन यादो मैं


मैं एक सफर मैं था !
मेरे उस सफर मैं
एक परिवार अपने दो
बच्चो और माँ के साथ कही जा रहा था !!

जो छोटा बच्चा था अपनी माँ के
साथ खेलने मैं मगन था !
खेल वो जो हर किसी के बचपन से है
खेल वो मेरा भी बचपन याद दिला रहा था !!

और वो बूढी अम्मा जो खिरकी के पास बैठी थी
इन पलो के देख कर कही खो गई
सायद अपने बचपन मैं
मेरी नजरे भी उस नज़ारे को देख मगन हो रहा था !!

पर कुछ तो था जो मेरे ख्यालो मैं
खलल दाल रहा था !
 
वो बड़ा लड़का जो दादी के पास
बैठा था ' नजाने उसे क्या शैतानी सूझी वो दादी के साथ मस्ती करने लगा !!

मैंने देखा वो झुरियों से लदे चेहरे
पर एक मुस्कान का लकीर आया
पर तुंरत मैंने वो चेहरे से
मुस्कान को वापस जाता पाया !!

मैंने देखा बहु बेटे की नजर
गुस्से से उसके अपने बेटे पर पाया
लड़का माँ बाप के नजर को देख
सहम कर चुपचाप बैठ गया !!

"और वो कांपती बदन' उस
बूढी आँखों मैं दो बूंद आंसू का था "
वो ऑंखें सीकुर गई थी सायद
अतीत के यादो मे

बदन और और कांप रहा था
ऑंखें और सीकुर रही थी
पता नही उन यादों मैं क्या था !!
अतीत का वो याद जो

किसी के बचपन को सहारा दिया था
या वो जो उसके जवानी को
संवारा था !!!
"या कुछ ऐसा जो
अभी के पलो को जवानी मैं गुजारा था"

कुछ तो था उन यादो मैं
जो मेरे ख्यालो मैं खलल दाल रहा था !!!


(शंकर शाह)

Thursday 29 July 2010

Khud Se Bate / खुद से बाते

धरती है आसमान है..आसमान है धरती है..मै हूँ शरीर है..शरीर है मै हूँ..नदी से मछली का रिश्ता, तारों से आसमान का..इन रिस्तो को सिर्फ हमारी विचारे हीं नाम दे सकती है..पर तनहा दिन रात से बूढी माँ का रिश्ता ...जैसे पहला सपना सच होने का..सवाल नाम देने का नहीं है...सवाल महसूस करने का है..की मैंने क्या महसूस किया..कभी महसूस करने से खुशी होती है तो कभी गम...जो भी हो मजा आयेगा..एक बार खुद से बाते करके तो देखिये


(शंकर शाह)

Monday 26 July 2010

Sujan Bhagat ko Mujhse Milne To Do / सुजान भगत को मुझसे से मिलने तो दो

मेरे तनहाइयों को आवाज़ बनने दो
मेरे आंसुओ को मेरा जज्बात बनने दो
अगर गिर पड़ा होश खोकर
मेरे हौसले को मेरा सहारा बनने दो


नहीं चाहिए साथ आपका
अब हाथो में वो ताकत नहीं
उठा ले जो बोझ आपके दिए सितम का
वो सितम को मेरा मुस्कान बनने दो


मुझे मेरे हाल पे रहने दो
जिन्दा हूँ " वो आपकी बद्दुआ है"
दुआ है की आप खुश रहो
मुझे घर का खाट बनने दो


मेरी लाश आपकी बोझ नहीं होगी
ज़रा वक़्त, मेरे कदमो को सम्भलने दो
में कल हीं नहीं, आज भी हूँ
थोड़ा मौसम को तो बदलने दो


जिया कल भी था, और जिन्दा भी हूँ
कल में ताकत था आपका, अब सिसक रहा हूँ
मेरी सिसक को अब रौद्र बनने दो
अब मेरी जिंदगी को मेरी ताकत बनाने दो


बहुत सहा जिल्लत इन दिनों
अभिमान को खिलने दो
फिर लौटूंगा पुराने रुख में
सुजान भगत को मुझसे से मिलने तो दो

(शंकर शाह)

Saturday 24 July 2010

Mai Aakar Le Rahi Hoon maa / मै आकार ले रही हूँ माँ


मै आकार ले रही हूँ माँ
तेरे सपने रूप साकार ले रही हूँ माँ

टूटे तारों से मांगी दुवा की

एक आकार हूँ

तेरे सपनो के सच्चाई

की रूप साकार हूँ

ख्याली खेत पर लगाई फसल

उभार ले रही हूँ माँ

मै आकार ले रही हूँ माँ


तेरे अन्खेले किती किती

की गोटी हूँ

तेरे खामोश अल्हर्पण

की मोती हूँ

तेरे अकेले पण की पुकार

अवतार ले रही हूँ माँ

मै आकार ले रही हूँ माँ


काली अमावस सी डर में

देवदूत की आहट हूँ

तेरे बैचेन रात दिन की

मै राहत हूँ

तेरे प्राथना पुकार की अनुगूँज

तुझमे सुप्त पड़ी माँ दुर्गा
,
काली रूप धार ले

मूर्च कटार धार ले रही हूँ माँ

मै आकार ले रही हूँ माँ

(शंकर शाह)

Friday 23 July 2010

Jo Hai Us Se / जो है उस से

जो है उस से खुश नहीं..उस से बेहतर पाने की ख्वाहिश...जो है जो पाना चाहते थे..जो पाना चाहते थे मिला पर बेहतर नहीं.. जो है उसी में से है पर धोखा इस बार शायद कुछ अलग हो...पाने की ख्वाहिश बहुत कुछ करने को प्रेरित करता है...और प्रेरित आत्मा समझौते के लिए..और समझौते के नीव से बनी रिश्ते को जब नाम मिल जाये तो उसका कोई मौल नहीं..फिर से एक नए नीव की तैयारी..अनजान सुनसान रास्ता आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ..बेहतर बनाना और बेहतर पाने में बहुत अंतर है...जहा पाना बढ़ने को प्रेरित करता है वही बनाना जो है उसी को बेहतर....फैसला आपका......

(शंकर शाह)

Thursday 22 July 2010

Mahan Aviskar Ka Avishkarkarta / महान आविष्कार का आविष्कारकर्ता

ख्वाबो के गिनती से अलग होकर जब रात के आगोश में लौटता हूँ तो असमान अपने तरफ आकर्षित करने लगता है.उलझ जाता हूँ तारों से अंखियों का छुपनछुपाई खेलने में.सप्तऋषिओं का खोज ऐसा लगता है जैसे किसी महान आविष्कार का आविष्कारकर्ता में हीं हूँ.हवा दोस्त का लोरी सुनकर जब आंख पलक झलकने लगते है तो चंदामामा कान में आकर फुसफुसा कर कहते हैं रात अभी बाकि है.फिर हाँथ  नए आविष्कार के लिए तारो को आँखों के दायरे में कैद करने लगता है........



(शंकर शाह)

Wednesday 21 July 2010

Jindagi Se Sirf / जिंदगी से सिर्फ

कई पल ऐसे आय जिंदगी में जब सवाल नहीं था...विश्वाश था ऊपर वाले के ऊपर..एक बृक्ष से लोभ रूपी प्यार जैसा ...घासों को रौंदा बहुत पैरो तले और रौंद्वाया भी..गिरा खड़ा हुआ तो गाली देते हुए..कुछ लम्हों को हटा दे तो जिंदगी से सिर्फ शिकायते होती है..मेरे विश्वास में खोट हो या उपरवाला हीं न हो इससे कोई मतलब नहीं..तकलीफ होता है जब वो कुछ पल ...दिमाग रूपी जाल से निकल कर आत्मा रूपी चलनी में चल कर मुझे मेरा चेहरा दिखाता है



(शंकर शाह)

Tuesday 20 July 2010

Aina Bhi To / आइना भी तो

अपने हथेली को गौर से देखा तो ऐसा लगा कुछ मेरे हाथो से छुट चूका है...कुछ ऐसा है जो में भूल रहा हूँ...यादो के समंदर में गोता लगाकर ढूंढने लगा वो मोती..मिला भी तो एक मजदूर के रूपमें मेरा जीवन चक्र..भागमभाग भरी जिंदगी में भागता रहा कब जीवन चक्र बुढ़ापे के देहलीज पर पहुँच गया पता हीं न चला..बच्चो के चेहरे को देखकर आइना भी तो झूठ बोलता रहा..


(शंकर शाह)

Friday 16 July 2010

Aa Banaya Hai Ye Madhu Ka Pyala / आ बनाया है , ये मधु का प्याला

आ बनाया है , ये मधु का प्याला,
लगाले अधरों से भूल जाएगी गम,
भूल जाएगी सब हाला,
रोना नहीं मेरी अंगूरी,
चाहे रोज तोडू तेरा हड्डी या ताला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
माँ को देख ले, कल तक वो
कमाती रही मेरे लिए...
आज तुने है कमान संभाला,
आजा चखले ये स्वर्ग सी प्याला
भूल जाएगी हर गम,
क्योकि हर गम का है
यह हाला,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मत देख पीछे, अपने बच्चो को माँ को,
मैंने खा लिया है, अब भूख नहीं है बाला
अब तो चाहता हूँ दो घूंट उतार लू हलक में
ताकि निशि रात भी न लगे मुझे काला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
ह्म्म्म क्या सोचती, मत सोच
अपने ननद के लिए, भगवान ने
उसका भी किस्मत लिख डाला,
उसे भी ले जायेगा कोई पीनेवाला
चल पी न,
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
क्यों कोश्ती है अपने किस्मत को
तू खुशनसीब है, मै जिसे मिला
वो है किस्मत वाला,
देख नेता कहते मुझे, तू मेरे कुर्सी का रखवाला
देख मेरे वजह से चल रही, टूनडू का मधुशाला
नेताओ की जी हुजूरी दंगा फसाद,
माओबाद का में हीं तो हूँ जाला, 
मुझे मिल जाये अंगूरी  रस
फिर नहीं चाहिए स्वर्ग रूपी मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला
मुझसे हीं घर बिखरे, कई घड़ो मैंने तोड़ डाला
मुझे भी दुख होता है जब तोड़ता मंदिर मस्जिद
पर इसी से तो मिलती है तुझसी मधुबाला
सब साफ़, जब बैठता ऊपर मधुशाला
हाँ येही से सुरुआत येही ख़तम
येही तो है मेरा मधुशाला
आ बनाया है , ये मधु का प्याला


(शंकर शाह)


 

Thursday 15 July 2010

Sawal mere Hone Ka / सवाल मेरे होने का

मै जितना सवालो के घेरे से निकलना चाहता हूँ..उतना हीं उसमे घिरता जाता हूँ...जबाब तो धुन्धता हूँ पर जबाब फिर से सवाल कर बैठता है...जबाब से सवाल और सवाल का जबाब.. इनका सिलसिला चलता रहता है..अगर चाहे तो सवाल से भाग तो सकते है क्योकि इसका दायरा अनंत है निराकार है..पर कब तक, मौत भी तो एक जबाब है जिंदगी का और जिंदगी भी तो एक सवाल है मेरे होने का....



(शंकर शाह)

Wednesday 14 July 2010

Dhool Se Aalergy Hai / धुल से एलर्जी है

गाँव के पगडंडियो से पूछता मेरा बचपन..खामोश पड़े मंदिर के चारदिवारिओं से सवाल करता मेरा छुपनछुपाई..मंदिर के घंटे की तरह रह रह जागना चाहता मेरा बचपन से सवाल पूछते शांत पड़े पीपल दादा लौट आओ बेटे अब भी मुझमे वो ताकत है तुम्हारे साथ झूम उठू..पर शहर की गलियां निशि रात के सपने की तरह उन्हें भोर तक पोता माड़ देती है..लौटना तो चाहता हूँ दादा पर मेरे बच्चो को धुल से एलर्जी है... 


(शंकर शाह)

Sunday 11 July 2010

Mai to Majdoor Hoon / मै तो मजदूर हूँ

मै तो मजदूर हूँ,
मुझे औरो से क्या

मै बनाता आपका महल

मेरा रहने को घर नहीं
आपके महलो में
जोरता खून पसीना
अपने झोपड़े में जोरने
को ईंट भी नहीं
मेरे खून पसीने की
आपके नजरो में मोल क्या

मै तो मजदूर हूँ ,

मुझे औरो से क्या

मेरी किस्मत तो देखिये

सपने अपने बुने
आकार मै देता रहा
खुद में बँट कर उसे जोरता रहा 
फिर भी आपके उन सपनो
मेरा अस्तित्व क्या

मै तो मजदूर हूँ,

मुझे औरो से क्या

तस्सली हर रोज देता हूँ

खुद से, कल मेरे हालात
सँवर जायेंगे ,
पर आज की जद्दोजहद में
मेरा कल क्या

मै तो मजदूर हूँ,

मुझे औरो से क्या

अनाज के दर्रे से

सेंकता भूख को ,
और भूख आपका सौक
मेरे मेहनत का फल
मेरी किस्मत
वाह मेरे किस्मत के निर्माता
मेरा भी किस्मत क्या

मै तो मजदूर हूँ,

मुझे औरो से क्या

कहने को तो मेहनत से

लगन से दुनिया अपनी
अपनों के भूख की रोटी
मजबूर मेरी मेहनत लगन
का आधार क्या,

मै तो मजदूर हूँ,

मुझे औरो से क्या


(शंकर शाह)

Friday 9 July 2010

Bada Sukun Milta Hai / बड़ा सुकून मिलता है

सदियों के सफ़र तय करने बावजूद मुस्कुराता पीपल...ढल चुकी जीवन के साम बावजूद बच्चो के ख़ुशी पे खुश माँ बाप..कई चेहरे है जो सीढ़ी बनके भी खुश हो लेते है..दुनिआदारी नाम की तपिश भी उन्हें पिघला नहीं पाती..खो के देखो गहराई में बड़ा सुकून मिलता है किसी झुके हुए कमर का लाठी बनकर किसी लड़खड़ाते कदम को अंगुली थमाकर.......


(शंकर शाह)

Thursday 8 July 2010

Hum Sanskari Log Hain / हम संस्कारी लोग है

सृस्ती के एक हीं गर्भ से पैदा हुए..पर संस्कार देने वाले अलग अलग राह अनुसरण कराते रहे..इतिहास के पन्नो में मैंने भी अनुसरण किया उस राह को और तुमने भी..अपना पदचिन्ह छोडते रहे ताकि दूसरा भी अनुसरण करे..एक घर में कई चेहरे पर उनपे मोहर अलग होने का.. एक ठप्पा विचारो के बोझ का..तुम भी उठाओ में भी उठाऊ "संस्कृति" है और हम संस्कारी लोग है.....

 

 

(शंकर शाह)

Tuesday 6 July 2010

Ichhayen To Anant Ganga / इच्छाएं तो अनंत गंगा

मैं बहुत कुछ सोचता हूँ लेकिन बहुत कुछ नहीं कर पाता..इसीलिए नहीं इच्छाशक्ति नहीं है इसलिए की इच्छाये विचार के भावुकता की बलि चढ़ जाती है...आटा, ताव, तावा ये पूरक है रोटी के पर उन सब के बिच कमानेवाला, लानेवाला. खानेवाला भी है..ये आंख सहित अँधा सफ़र है.. इच्छाएं तो अनंत गंगा की तरह है...कभी इच्छाओं को मारना परता है तो कभी इच्छाएं अपने आप मर जाती है..


(शंकर शाह)

Saturday 3 July 2010

Dharti Maa Jaise / धरती माँ जैसे

जिंदगी में कई वक़्त ऐसे आते है जब पत्थर से पत्थर इंसान भी कांप उठता है अपने दिल में उठने वाले जज्बातों से और अपनों के तकलीफ से..जो हम मुखौटा लगाते घूमते है क्यों वो भी पसीज जाता है अपने पीछे चेहरे के भाव से..कभी क्या ऐसा नहीं हो सकता की हम तारे बन जाये जैसा भी परिस्थिति हो टिमटिमाते रहे..या धरती माँ जैसे...




(शंकर शाह)

Friday 2 July 2010

Ek Jinda Robot Hoon / एक जिन्दा रोबोट हूँ

एक भीड़ है जो चल रहा है..एक रास्ता है जो उस भाड़ को सह रहा है..जो मूक है वो इशारा कर रहा और जो बोल सकता है वो रोबोट सा अनुसरण कर रहा है..रास्ता गवाह बन कह रहा है आपबीती उन पथिको का अपने में समेटे उनके अवसेशों के सहारे..फिर भी भीड़ को तो चलना है चल रहा है..पता नहीं लाशों के साये पर कितनो का चलना अच्छा क्यों लगता है और कितनो को उन्ही लाशो के अर्थी पर बलात्कार रूपी राजनीती..पर मेरा क्या में भी तो एक जिन्दा रोबोट हूँ..अभी कलपुर्जा बेटरी का वारेन्टी तो है..


(शंकर शाह)